कांग्रेसी एकता के प्रयास

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उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस में नेताओं के बीच लंबे समय से चली आ रही वर्चस्व की जंग पार्टी के लिये किसी अभिशाप से कम नहीं है। खास बात यह है कि पार्टी के सभी शीर्ष प्रदेश नेता इस सत्य को भली—भांति जानते हैं। लेकिन वह समय—समय पर एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई भी अवसर हाथ से नहीं जाने देते हैं। पार्टी के चंद शीर्ष नेताओं ने जिनकी 10 जनपद पर मजबूत पकड़ रही है और जिनकी बात को सोनिया गांधी व राहुल गांधी तवज्जो देते हैं वह अपने इन रसूखों का इस्तेमाल अपने निजी हितों के लिए तो करते ही रहे हैं साथ ही इसका इस्तेमाल वह अपने प्रतिद्वंद्वियों को पटखनी देने के लिए भी करते आए हैं। प्रदेश कांग्रेस की जो वर्तमान स्थिति है उसके लिए प्रदेश के नेता ही जिम्मेदार नहीं है पार्टी हाईकमान के वह फैसले भी जिम्मेदार हैं जो उन्होंने दूसरे पक्ष की बात सुने बिना या सबको विश्वास में लिए बिना ही लिए हैं। अभी अगर ताजा हालात की बात की जाए तो गदरपुर विधायक तिलकराज बेहड़ के उस बयान को लिया जाए जिसमें उन्होंने क्षेत्रीय असंतुलन का आरोप लगाते हुए पार्टी के सभी महत्वपूर्ण पदों पर कुमाऊं मंडल के लोगों की बात उठाई थी और गढ़वाल की उपेक्षा का आरोप लगाया था। बात अगर प्रीतम सिंह की, की जाए जिन्होंने प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव पर कई आरोप लगाए तो इन आरोपों पर अगर गंभीरता से विचार किया जाए तो यह आरोप बेवजह नहीं है। अगर हाईकमान द्वारा अपने उन नेताओं की जिनकी अपने क्षेत्रों में मजबूत पकड़ है अगर उनकी उपेक्षा की जाएगी तो यह स्वाभाविक ही है कि उनका मनोबल टूटेगा ही अगर शीर्ष नेतृत्व उनकी बात भी नहीं सुनेगा तो उनका फिर सार्वजनिक मंचों से बयान बाजी करना भी स्वाभाविक है। ऐसे समय में जब पार्टी के स्वार्थी नेता पार्टी छोड़कर भाग रहे हैं या भाजपा ने असंतुष्ट नेताओं को तोड़ने की मुहिम छेड़ रखी है पार्टी से अच्छे नेताओं का पलायन जारी है। बीते एक दशक में कांग्रेस जो भाजपा के निशाने पर रही है, को इसका भारी नुकसान हुआ है। प्रदेश कांग्रेस के दर्जनभर से अधिक भारी भरकम नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में जा चुके हैं जिनके जाने से पार्टी को 10 से 15 सीटों का नुकसान हुआ है। बीते 2 विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के नतीजे इसका प्रमाण है। भले ही कांग्रेसी नेता भविष्य में किसी जीत की संभावना तलाश रहे हो लेकिन वर्तमान के जो हालात हैं वह साफ बताते हैं कि इस सूरत में कांग्रेस कोई भी चुनाव नहीं जीत सकती है। पीएल पूनिया भले ही अपने तीन दिवसीय दौरे के बाद यह कहते दिखे हो कि कांग्रेसी एकजुट हैं लेकिन जमीनी हकीकत एकदम अलग है। हरीश रावत हो या करन माहरा यशपाल आर्य हो या फिर प्रीतम सिंह सभी नेता अपनी अपनी चाल चल रहे हैं। पीएल पूनिया क्या रिपोर्ट देते हैं? और हाईकमान इस रिपोर्ट पर क्या एक्शन लेता हैं? अलग बात है लेकिन यह साफ है कि यह कोई ऐसा एक्शन नहीं हो सकता जो कांग्रेस की दिशा और दशा को बदलने वाला साबित होगा।

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