बुजुर्गों की सुरक्षा का बड़ा मुद्दा

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बीते कल राजधानी दून में फिर एक बुजुर्ग महिला की हत्या करने का मामला सामने आया है वह कोई नया मामला नहीं है। दून में अकेले रहने वाले बुजुर्गों की दर्जनों हत्याओं के मामले पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हैं। डेढ़ माह में यह दूसरी ऐसी घटना है। प्रेम नगर में बीते कल जिस तरह मनजीत कौर नाम की वृद्धा की गला रेत कर हत्या कर दी गई है ठीक इसी तरह भंडारी बाग में अकेले रहने वाली कमलेश धवन की हत्या भी गला रेत कर दी गई थी। दरअसल अकेले रहने वाले यह बुजुर्ग अपराधियों के लिए सबसे सॉफ्ट टारगेट होते हैं। क्योंकि शारीरिक रूप से वह किसी भी हमले का मुकाबला करने में अक्षम होते हैं और घर में उनकी मदद करने वाला कोई होता नहीं है। इन बुजुर्गों की जान पर हमेशा ही खतरा इसलिए भी बना रहता है क्योंकि इनके पास जो संपत्ति होती है उस पर उनके ही अपनों की या फिर आसपास के लोगों की गिद्ध नजर बनी रहती है। यही कारण है कि ऐसे आपराधिक मामलों में पुलिस पहले बेनिफिशियर की तलाश करती है। हत्या से जिसे भी सबसे ज्यादा लाभ मिलने की संभावना होती है पहले वही संदेह के दायरे में आते हैं। खासकर जब हत्या के साथ लूटपाट या चोरी डकैती जैसी कोई बात सामने नहीं आती है। बीते दिनों जिन दो बुजुर्ग महिलाओं की हत्या हुई है उनमें लूटपाट नहीं हुई है। कमलेश धवन की हत्या के मामले में पुलिस ने एक नशेड़ी व्यक्ति को आरोपी बनाया है। इससे यह भी समझा जा सकता है कि इस तरह की हत्याओं के पीछे हत्या के ठोस कारण तलाश पाना कितना मुश्किल है। बीते कुछ साल पूर्व राजपुर क्षेत्र में एक बुजुर्ग की हत्या का मामला सामने आया था। प्रथम दृष्टया ऐसा लगा कि बुजुर्ग के नेपाली नौकर ने उसकी हत्या की और वह फरार हो गया लेकिन बाद में पुलिस को नौकर का शव भी उसी परिसर से बरामद हो गया मालिक और नौकर दोनों की हत्या की जब गुत्थी सुलझी तो पता चला कि नौकर का एक दोस्त जो उसके पास आता जाता था व खाता पीता था उसी ने दोनों की हत्या कर लाखों का माल साफ कर दिया खैर पुलिस उसे पकड़ने में सफल हो गई। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि अकेले रहने वाले बुजुर्गों की सुरक्षा का मुद्दा एक गंभीर मुद्दा है। दून के पुलिस प्रशासन द्वारा इस तरह की घटनाओं के बाद इनकी सुरक्षा पर कई तरह की एक्सरसाइज तो की जाती रही है लेकिन वह धरातल पर चल नहीं पाई है। क्षेत्रीय थाना पुलिस द्वारा इनके फोन के माध्यम से या उनके घर जाकर उनकी कुशल क्षेम पूछने से लेकर उनके साथ संवाद बनाए रखने की निरंतरता को पुलिस के लिए निभाना मुश्किल हो जाता है। लेकिन पुलिस विभाग को इन बुजुर्गों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इन बुजुर्गों को इनके हाल पर अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है। यूं तो समाज में अनेक सामाजिक संगठन होते हैं लेकिन उनका भी ध्यान इस तरफ नहीं जाता है कि खुद इनकी सुरक्षा का जिम्मा ले। बीमार होने या अन्य किसी भी असामान्य हालत में यह बुजुर्ग पुलिस या अन्य किसी को भी अपने बारे में सूचना दे सके इसकी एक पुख्ता व्यवस्था अगर हो तो कई बार इन बुजुर्गों की जान बचाई जा सकती है।

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