कैसा लोकतंत्र और प्रेस की आजादी?

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राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने संसद में जारी गतिरोध और हंगामे पर कई अति संवेदनशील बातें कही। भारत के लोकतंत्र को दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र और अन्य लोकतंत्रोंंं की जननी बताते हुए उन्होंने संसद को लोकतंत्र का गर्भ ग्रह बताया। इन बीते कुछ सालों में देश के लोगों ने जो देखा है या वर्तमान में जो हो रहा है क्या वह किसी भी लोकतंत्र के मंदिर या गर्भ ग्रह में होना चाहिए? इसके साथ ही उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के संविधान सभा में दिए गए उस अंतिम भाषण का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने अपने ही कुछ लोगों के विश्वासघात के कारण देश के गुलाम होने की बात करते हुए कहा था कि यदि देश की राजनीतिक पार्टियां देश से अधिक पंथ को महत्व देगी तो हो सकता है कि दूसरी बार अपनी स्वतंत्रता को हमेशा के लिए गवंा दे। इस देश में लोकतंत्र के चार स्तंभों की बात की जाती है। जिसमें कार्यपालिका और न्यायपालिका के साथ पत्रकारिता (मीडिया) को भी एक मजबूत स्तंभ माना जाता है। इन दिनों कार्यपालिका (संसद) में क्या कुछ हो रहा है इसे सिर्फ लोकसभा व राज्यसभा के सभापति ही नहीं देख या सुन रहे हैं उसे पूरा देश और विश्व देख और सुन रहा है। संसद में अगर विपक्ष कमजोर है तो क्या इसका मतलब यह होता है कि सत्ता पक्ष द्वारा उसकी बात को सुना ही न जाए? बीते कल कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष खड़गे ने कहा कि हमें बोलने क्यों नहीं दिया जा रहा है। अगर हम नियम 267 के तहत अडाणी के मुद्दे पर चर्चा चाहते हैं तो इस पर चर्चा क्यों नहीं हो सकती है। जिस संसद की कार्यवाही पर एक घंटे में लाखों रुपए खर्च आता है अगर उस संसद की कार्यवाही को सत्ता पक्ष द्वारा इसलिए नहीं चलने दिया जाए कि वह उन मुद्दों पर चर्चा नहीं होने देना चाहता, जिन पर विपक्ष चर्चा चाहता है तो फिर यह कैसा लोकतंत्र और कैसा लोकतंत्र का मंदिर और कैसा गर्भ ग्रह है। इस संदर्भ में बीते कल देश के सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा मीडिया की स्वतंत्रता पर की गई टिप्पणी का जिक्र किया जाना इसलिए जरूरी है क्योंकि बात लोकतंत्र की हो रही है और मीडिया भी लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है। इस टिप्पणी में पीठ ने कहा कि मजबूत लोकतंत्र के लिए प्रेस की आजादी जरूरी और सरकार की नीतियों की आलोचना को सत्ता का विरोध नहीं माना जा सकता है। पीठ ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को नसीहत देते हुए कहा है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के खतरे के हवाई दावे करके उसे नागरिक सुधारो के इन्कार करने का हथियार न बनाया जाए। पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा केरल के एक चैनल को बैन करने के फैसले को गलत बताते हुए यह दलीलें दी गई है। हमारा संविधान देश के नागरिकों की अभिव्यक्ति की आजादी देता है। हर किसी को कानूनी और सामाजिक मर्यादाओं के दायरे में रहकर अपनी बात कहने का अधिकार है। यह देश संविधान और समाज के नियम कानूनों से चलता है लेकिन क्या वर्तमान दौर में लोकतंत्र की मजबूती जिन मूल बिंदुओं या स्तंभों पर निर्भर है वह सभी स्तंभ अपने उत्तरदायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन कर रहे हैं। कार्यपालिका व प्रेस तक सही मायने में अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से नहीं निभा रहे हैं। इस दौर में सिर्फ अधिकारों की बात हुई है। निजी हितों की सोच हावी है सामाजिक सरोकार और राष्ट्रीय हित की बात सिर्फ दिखाने भर के लिए भाषणों तक सीमित हो गई है।

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