भले ही राहुल गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह कहा हो कि भाजपा ने पैनिक होकर उनकी लोकसभा सदस्यता को रद्द करा दिया, लेकिन ऐसा करके सरकार ने विपक्ष को एक बड़ा राजनीतिक हथियार थमा दिया। राहुल गांधी की यह बात निसंदेह सही है लेकिन इसके साथ ही यह सवाल भी अहमं है कि इस बड़े हथियार का कांग्रेस और विपक्षी दल कितना सही इस्तेमाल कर पाते हैं। देश में ऐसे करोड़ों लोग हैं जो यह जान समझ रहे हैं कि राहुल गांधी को अदालत से हुई 2 साल की सजा जो 4 साल पहले के एक चुनावी भाषण को लेकर हुई है तथा लोकसभा से तुरत—फुरत इस सजा के आधार पर उनकी सदस्यता समाप्त किए जाने की कार्यवाही राजनीति से प्रेरित है और गलत है लेकिन कांग्रेस अपनी इस सही बात को देश के समाज को कितने प्रभावी ढंग से समझा पाती है और इसे चुनाव तक कैसे एक जनांदोलन में तब्दील करती है। यह कांग्रेस के लिए कठिन काम होगा, अगर चंद दिनों के धरने—प्रदर्शनों और सत्याग्रह के बाद यह मुद्दा भी अन्य मुद्दों की तरह ही सामान्य मुद्दा बन जाता है तो कांग्रेस को इस बड़े हथियार का कोई फायदा होने वाला नहीं है। इस घटना ने राहुल गांधी को और अधिक कद्दावर छवि वाला नेता बना दिया है, इसमें भी कोई शक और संदेह नहीं है। इसकी झलक उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी देखने को मिली विपक्ष के वह तमाम बड़े नेता भी राहुल गांधी व कांग्रेस का समर्थन करते दिख रहे हैं तो यह यूं ही नहीं है। लेकिन राहुल गांधी और कांग्रेस को अधिक उदारता के साथ सभी विपक्षी दलों के नेताओं के साथ समन्वय और सहयोग बनाने की जरूरत है। अगर उनकी इस लड़ाई में पूरा विपक्ष अंतिम समय तक उनके साथ खड़ा रह सकता है तभी वह इस लड़ाई को निर्णायक मुकाम तक ले जा पाएंगे। भाजपा कांग्रेस के विरोध और इस लड़ाई को कमजोर करने के लिए उनके द्वारा ओबीसी समाज का अपमान बताकर प्रचारित किया जा रहा है वहीं अदालत के आदेश के खिलाफ आंदोलन बताकर यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस न संविधान को मानती है और न न्यायपालिका में उसका विश्वास है। कांग्रेस को भाजपा के प्रचार का माकूल जवाब देना होगा कल खड़गे ने जो कहा कि ललित मोदी और मेहुल चौकसी तथा नीरव मोदी भगोड़े अपराधी हैं भाजपा सरकार उनका विरोध क्यों नहीं सुन पा रही है। उनका कहना है कि नीरव ललित और चौकसी क्या ओबीसी वर्ग के हैं फिर भाजपा कैसे कह सकती है कि राहुल ने ओबीसी का अपमान किया है। कांग्रेस के लिए इस मुद्दे से जुड़ी एक अहम बात यह है कि कांग्रेस का खुद का संगठन इस लड़ाई को आगे कैसे ले जाता है। क्या राहुल गांधी को अपनी 2 साल की सजा के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील में जाना चाहिए? अगर उच्च न्यायालय उन्हें बरी कर देता है या सजा को कम कर देता है तब क्या 2024 के चुनाव से पहले उनकी सदस्यता बहाल हो सकती है? और अगर लोकसभा अध्यक्ष ने सदस्यता बहाल नहीं की तो क्या होगा? आदि कई ऐसे सवाल हैं जिन पर कांग्रेस के रणनीतिकारों को विमर्श की जरूरत है। कांग्रेसी सांसद अगर इस मुद्दे पर खुद लोकसभा से इस्तीफा देकर विपक्ष को भी इसके लिए प्रेरित कर पाते हैं तो यह लड़ाई निश्चित तौर पर और अधिक मजबूती से लड़ी जा सकती थी। लेकिन कांग्रेसी खुद ही इस लड़ाई को आधे अधूरे मन से लड़ते दिख रहे हैं। जो कांग्रेस की कमजोरी को साबित करता है।