भ्रष्टाचार की अमरबेल

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बीते कल एक समाचार कर्नाटक राज्य से आया जहां एक भाजपा विधायक विरूपक्षप्पा के बेटे को एक ठेकेदार से 40 लाख की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा गया इसके बाद लोकायुक्त पुलिस ने जब उसके घर छापा मारा तो 6 करोड रुपए बरामद हुए। उधर कल एक समाचार देश की सर्वाेच्च अदालत (नई दिल्ली) से आया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ राज्य के पूर्व प्रमुख सचिव अमन सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि धन के अतृप्त लालच ने भ्रष्टाचार को कैंसर बना दिया है यदि भ्रष्टाचारी कानून को धोखा देने में सफल हो जाते हैं तो उन्हें यह गुमान हो जाता है कि कानून आम व विनम्र लोगों के लिए बना है उनका तो पकड़ा जाना पाप है। यह अदालतों का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता दिखाएं। भ्रष्टाचार के संबंध में कुछ लिखे जाने से पहले यह बताना जरूरी है कि बीते कई दशकों से देश में भ्रष्टाचार की जड़ें तलाशने पर बहस हो रही है जो अभी तक किसी मुकाम पर नहीं पहुंच सकी है एक अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि लोक सेवक और जनप्रतिनिधियों की भ्रष्टाचार के बारे में यह आम धारणा बन चुकी है कि भ्रष्टाचार देश की कार्य संस्कृति का एक हिस्सा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में जब देश की सत्ता संभाली थी तो उन्होंने कहा था कि न खाऊंगा और न खाने दूंगा, न सोऊंगा न सोने दूंगा। कर्नाटक के भाजपा विधायक के घर से करोड़ों बरामद और उत्तराखंड के भर्ती घोटालों में भाजपा के कई नेताओं के नाम आने और उनके द्वारा करोड़ों की संपत्ति अर्जित करने की घटनाओं की रोशनी में आप प्रधानमंत्री मोदी के उक्त नारे को एक जुमला भी कह सकते हैं। देश जब अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने कार्यकाल के 9 साल पूरे कर चुके हैं तब उनसे यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि उन्होंने देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए क्या कुछ किया है? यह सच है कि भ्रष्टाचार सिर्फ भारत या किसी एक राष्ट्र की समस्या नहीं है यह एक वैश्विक महामारी है और इसका समूल नाश किया जाना संभव नहीं है। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना या उसका उन्मूलन असंभव और अकल्पनीय भी नहीं है। यह बात कोई मायने नहीं रखती है कि भ्रष्टाचारी राष्ट्रों की रैकिंग में आपका देश किस पायदान पर है महत्वपूर्ण बात यह है कि भ्रष्टाचार का सर्वाधिक प्रभाव देश के आम और गरीब लोगों के जीवन पर ज्यादा पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि लालच भ्रष्टाचार की जड़ है। इस संदर्भ में मुझे एक कहानी याद आती है। एक व्यक्ति का अदालत में मुकदमा चल रहा था जो जज मामले की सुनवाई कर रहे थे उनके बारे में यह चर्चा आम थी कि वह एक ईमानदार जज है और उनके द्वारा निष्पक्ष फैसले सुनाए जाते हैं। आरोपी इस बात को जानकर बहुत परेशान हुआ क्योंकि उसे पता था कि गुनाह उसी ने किया है उसे उम्मीद थी कि उसकी सजा होना तय है। एक दिन सुबह—सुबह वह जज साहब के बंगले पर पहुंच गया तो जज साहब ने पूछा कि तुम कौन हो और क्यों आए हो? उसने जज साहब की इमानदारी की खूब तारीफ की और अपने ऊपर चल रहे मुकदमे के बारे में बताते हुए इंसाफ की गुहार भी लगाई। तो जज साहब ने भी कह दिया कि इंसाफ ही होगा। चलने से पहले उसने पूछा साहब शौचालय जाना था तो जज साहब ने उसे शौचालय की ओर इशारा कर दिया। उसने जेब से कुछ सोने की गिन्नी निकाली और शौचालय के लोटे में डालकर लौट गया। जज साहब जब शौचालय गए तो सोने की गिन्निया देखकर हैरान रह गए। पहले उन्हें गुस्सा आया लेकिन फिर गिन्नियंा निकाली और जेब में डाल दी। अदालत में जब जज साहब ने आरोपी को सामने खड़े देख पूछा कि तुम कौन हो तो उसने जवाब दिया साहब मैं आपके शौचालय का लोटा, और वह बरी हो गया। भ्रष्टाचार की जड़ लालच है यह तो पता नहीं लेकिन देश में आज भ्रष्टाचार अमरबेल बन चुका है जिसकी कोई जड़ है ही नहीं और वह बिना जड़ के ही फल फूल रहा है।

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