सरकार! दो कदम आगे, दो कदम पीछे

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उत्तराखंड की सरकार द्वारा 4 दिन पूर्व लिए गए उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें पुलों की हिफाजत के मद्देनजर पुलों से 1 किलोमीटर के दायरे में खनन पर रोक लगा दी गई थी। बीते 15 सितंबर को प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग आर.के. सुधांशु ने इस आशय के दिशा निर्देश राज्य के सभी जिला अधिकारियों को जारी करते हुए कहा गया था कि वह सभी पुलों के 1 किलोमीटर आगे और 1 किलोमीटर पीछे खनन न करना सुनिश्चित करें। अब उनके द्वारा अपने ही आदेश को पलट दिया गया है। अब उन्होंने अपने नए आदेश में कहा है कि उपखनन (चुगान) 2016 की नीति के अनुसार होगा जिसमें पुल के 100 मीटर की दूरी पर खनन कार्य किया जा सकता है। यह विडंबना ही है कि अभी 2 दिन पूर्व शहरी विकास मंत्री द्वारा निकाय अधिकारी और कर्मचारियों के 74 तबादले कर दिए जाते हैं और इसके 24 घंटे बाद मुख्यमंत्री धामी द्वारा इन तबादलों को रद्द कर दिया जाता है। तथा सभी कर्मचारियों को पूर्व के तैनाती स्थल पर ही कार्य करने को आदेशित किया जाता है, सवाल यह है कि आखिर उत्तराखंड का शासन चल किस तरह से रहा है या राज्य सरकार के अधिकारी और मंत्री बिना सोचे समझे कोई भी फैसला यूं ही कर लेते हैं और जब शासन प्रशासन के फैसलों पर सवाल उठने लगते हैं तो उन्हें रद्द कर दिया जाता है। अपने ही फैसलों पर इस तरह से यू टर्न लेना सरकार की अदूरदर्शिता को साबित करता है अपनी सरकार के तमाम ऐसे ही अदूरदर्शिता पूर्ण और गलत फैसलों के कारण पूर्ववर्ती भाजपा सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। त्रिवेंद्र सिंह रावत को न सिर्फ अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी बल्कि उनके बाद मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और पुष्कर सिंह धामी को उनके कई फैसले बदलने पड़े थे। जिसमें राज्य के तीर्थ स्थलों के लिए श्राइन बोर्ड की तर्ज पर बोर्ड बनाने और तीसरी कमिश्नरी बनाए जाने सहित अनेक फैसले शामिल थे। लेकिन भाजपा सरकार के दूसरे कार्यकाल में भी अपनी ही सरकार के फैसलों को बदलने का क्रम जारी है जिसे सरकार की सेहत के लिए अच्छे संकेत नहीं माना जा सकता है। राज्य की धामी सरकार द्वारा राज्य में जो बड़े फैसलों पर काम किया जा रहा है पहला है यूनिफॉर्म सिविल कोड और दूसरा है नया भू कानून। ऐसा नहीं है कि यह कोई छोटे फैसले हैं ऐसा भी नहीं है कि सीएम धामी भाजपा हाईकमान की सहमति के बिना इन पर आगे बढ़ रहे हैं लेकिन अगर किसी बड़े फैसले पर उन्हें यू टर्न लेना पड़ा तो यह उनके लिए मुसीबत का सबब बन सकता है। जहां तक पुलों की सुरक्षा की बात थी इसके मद्देनजर खनन पर पुलों के नजदीक प्रतिबंध लगाया गया था। मानसून काल में 32 से अधिक ऐसे पुल है जिन्हें अवैध खनन के कारण लाखों करोड़ का नुकसान हुआ है लेकिन खनन माफिया के हित शायद राज्य के हितों से ऊपर है जिसके कारण सरकार को 4 दिन में ही अपना फैसला वापस लेना पड़ा है। खनन और चुगान की आड़ में पुलों की जड़ों को खोदा जाना अगर जारी रहता है तो यह राज्य के लिए बड़ा नुकसान ही ह

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