मुर्दे से उत्तराखण्ड पुलिस को शांतिभंग का खतरा

0
358


देहरादून। उत्तराखण्ड पुलिस को मुर्दे से शांतिभंग का खतरा सताने लगा और दो साल पहले मरे व्यक्ति का चालान कर उसके घर भेज दिया। जिससे उसके परिवार वाले भी हैरान हैं कि उनके पूर्वज इतने खतरनाक थे कि मरने के बाद भी वह पुलिस को सता रहे हैं।
उत्तराखण्ड पुलिस समय—समय पर चर्चाओं में रहती हैं। कभी दरोगा भर्ती प्रकरण हो या फिर कोई अन्य कारण रहे हों। यहां यह भी साबित होता है कि कुछ पुलिस कर्मी तो जैसे नकल करके पास हुए हैं? देखने वाली बात है कि इनके चर्चा में रहने के शगल ने कई बार इनको शर्मसार भी किया लेकिन यह है कि मानने को तैयार ही नहीं। इनके इसी चर्चाओं में रहने के शगल ने एक परिवार को परेशान कर दिया जब उनके दो साल पहले मरे पूर्वज के नाम एक नोटिस रानीपोखरी थाने से पहुंचा तो वह हैरान रह गये कि दिखने में इतने शांतिप्रिया व्यक्ति थे लेकिन पुलिस उनके मरने के बाद भी इतनी खौफजदा है कि उनसे शांतिभंग का खतरा सता रहा है और उनके नाम नोटिस तक दे दिया। घटना का तब पता चला कि जब नेहरू कालोनी निवासी व्यक्ति ने एसएसपी शिकायत प्रकोष्ठ में प्रार्थना पत्र देते हुए बताया कि उसके पिता स्व. संदीप शर्मा पुत्र श्री एसके शर्मा निवासी ए 150 नेहरू कालोनी के नाम न्यायालय सहायक क्लैक्टर ऋषिकेश के यहां से समन/नोटिस प्राप्त हुआ जिसमें उनको आदेशित किया गया कि पुलिस आख्या 22 जनवरी 2023 के अनुसार उसके स्वर्गीय पिता से शांतिभंग होने का अंदेशा है जिस कारण उनको 50 हजार रूपये का व्यक्तिगत बंधनामा व इतनी ही राशी के दो प्रतिभूतियां प्रस्तुत करने हेतु आदेश दिया गया है। जबकि उसके पिता का स्वर्गवास 30 अक्टूबर 2021 को हो गया था। अब देखने वाली बात यह है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु दो साल पहले हो गयी है उसके नाम किस आधार पर पुलिस ने उसको पक्षकार बनाया। यहां यह बात एक बार फिर सिद्ध हो गयी है कि उत्तराखण्ड पुलिस की कार्यश्ौली ट्टट्टचलने दो यार’’ की हो गयी है। किसी बात को जांचना, पडताल करना यह सहीं नहीं मानते और कागज आगे बढाने से ही इनको मतलब है। यह कार्यश्ौली जहां एक तरफ पुलिस विभाग का माखौल उडाती है तो दूसरी तरफ इनकी लापरवाही साफ झलकती है। क्योंकि जब यह मुर्दे को ही जिन्दा करने पर उतारू हो गये हैं तो फिर इससे ज्यादा ओर क्या करेंगे इस मामले पर अधिकारियों को संज्ञान लेना होगा। वहीं रानीपोखरी थाना प्रभारी शिशुपाल राणा से फोन पर सम्पर्क किया गया तो उनका कहना है महिला कांस्टेबल ने प्रदीप की जगह संदीप लिख दिया। लेकिन यहां थाना प्रभारी अपनी गलती को छुपा गये कि बिना उनके हस्ताक्षर के कागज कोर्ट नहीं जा सकता जब प्रदीप की जगह संदीप हो गया था तो हस्ताक्षर करते समय तुमने क्यों नहीं ध्यान दिया क्योंकि वह भी चलने दो यार की कार्यश्ौली पर काम कर रहे थे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here