भ्रष्टाचार पर कोठियाल का वार

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आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री पद प्रत्याशी कर्नल कोठियाल के 25 हजार की रिश्वत देकर सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी पाने का मामला सोशल मीडिया और अखबारों की सुर्खियों में है। यूं तो देखने में भले ही यह मामूली बात हो लेकिन यह बात उत्तराखंड में व्याप्त भ्रष्टाचार की है जिसकी अविरल गंगा राज्य के गठन से ही अविराम बह रही है। इस मुद्दे की संवेदनशीलता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि राज्य गठन के हुए 2007 और 2012 के चुनाव सिर्फ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ही लड़े गए थे। भाजपा और कांग्रेस के नेता एक—दूसरे के कार्यकाल में हुए घोटालों की फेहरिस्त न सिर्फ जेबों में लेकर घूमते थे बल्कि चुनाव के दौरान चौक चौराहों पर इनके होर्डिंग लगाए जाते थे, यही नहीं मतदान केंद्रों तक भ्रष्टाचार के मामलों के पोस्टर चस्पा कर दिए जाते थे। उत्तराखंड के अधिसंख्य मंत्री व विधायकों के नाम इन भ्रष्टाचार के मामलों में अभी भी इतिहास में दर्ज है। यह बात अलग है कि लाख कोशिशों के बावजूद भी आज तक कोई नेता जेल नहीं भेजा जा सका है। क्योंकि भ्रष्टाचार का यह मुद्दा भाजपा व कांग्रेस के बीच सियासत की नूरा कुश्ती तक ही सीमित रहा है। भ्रष्टाचार को रोकने की सबसे बड़ी पहल सबसे पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने उस समय की थी जब अन्ना आंदोलन से प्रभावित होकर वह लोकायुक्त एक्ट लाए थे जिसे कांग्रेस और भाजपा नेताओं ने आज तक भी अस्तित्व में आने नहीं दिया है। 2017 के चुनाव के बाद प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह ने शपथ ग्रहण के बाद भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का उद्घोष किया था। किंतु एनएच 94 घोटाले की सीबीआई जांच कराने के मामले में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी की एक घुड़की ने उनकी जुबान पर ऐसा ताला डाला की फिर 4 साल मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अपनी जुबान पर कभी भ्रष्टाचार शब्द तक नहीं आने दिया। विधानसभा के पहले ही सत्र में लोकायुक्त के लिए लाया गया प्रस्ताव भी अब तक विधान सभा समिति की फाइलों में धूल फांक रहा है। एनएच 94 से लेकर स्टेट्रेजिया भूमि घोटाले, कुंभ घोटाले, छात्रवृत्ति घोटाले और ढेंचा बीज घोटाले तथा तमाम भर्तियों में हुए सैकड़ों बड़े घोटाले अब तक जो प्रकाश में आ चुके हैं उनके आरोपियों को कोई सजा हो न हो लेकिन सूबे के भ्रष्टाचार के इतिहास में तो दर्ज रहेंगे ही। भले ही सूबे में लाखों युवा बेरोजगार दर—दर की ठोकरें खाते फिर रहे हो लेकिन चोर दरवाजे से सियासी रसूख वाले कैसे रोजगार पाते रहे हैं यह भी किसी से नहीं छिपा है। आम आदमी पार्टी की सियासत का अपना तरीका भी कुछ अलग ही है। कर्नल कोठियाल ने सूबे के भ्रष्टाचार पर अपनी रणनीति के तहत जो प्रहार किया है वह भले ही चुनावी दांव सही परंतु सच तो है ही। इस मामले में किसी दोषी पर कार्रवाई होगी इसकी भले ही कोई गारंटी न सही।

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