अब होगा पैगासस पर न्याय

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भारत सरकार द्वारा इजराइली कंपनी द्वारा बनाए गए जासूसी सॉफ्टवेयर (पैगासस) के इस्तेमाल पर सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दिया गया था उसमें यह नहीं कहा गया है कि उसने इसका इस्तेमाल नहीं किया है। राष्ट्रीय सुरक्षा का सहारा लेकर इस हलफनामे में सिर्फ विस्तृत जानकारी न देने की असमर्थता जताई गई है जो इस बात को दर्शाता है कि दाल में कुछ न कुछ तो काला है। देश के नागरिकों की निजता के अधिकार से जुड़े इस मामले में देश की सर्वाेच्च अदालत ने जो संवेदनशीलता दिखाई है उसके लिए वह साधुवाद की पात्र है। देश के लोकतंत्र और उसके नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जिम्मेदारी लेते हुए अदालत ने निजता के अधिकार को न सिर्फ जीवन का अधिकार जैसा बताया है बल्कि सियासी शोर शराबे के बीच कानून का शासन बनाए रखने की जो प्रतिबद्धता जताई है एक मजबूत लोकतंत्र के लिए जरूरी है। देश की सर्वाेच्च अदालत ने पैगासस मामले में दायर याचिकाओं को आर्वेलियन चिंता बताए जाने पर केंद्र सरकार को गौर करने की जरूरत है। आर्वेलियन का अर्थ है सर्व सत्तावादी सरकार का प्रोपेगेंडा, कड़ी निगरानी, भ्रामक सूचनाएं और झूठ तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों की साख बिगाड़ कर व नाम दबाकर नागरिकों पर शासन करना। सवाल यह है कि अंग्रेजी लेखक वार्डा आर्वेल के उपन्यास जिसके सार तत्व का हवाला सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में दिया है क्या हमारी वर्तमान सरकार का आचरण वास्तव में वैसा ही है जिस पर नियंत्रण रखने और नागरिकों के मूल अधिकारों का हनन रोकने से पीछे न हटने की प्रतिबद्धता सुप्रीम कोर्ट ने जताई है। यही नहीं अदालत ने तो यहां तक कहा है कि न्याय होना ही नहीं चाहिए अपितु ऐसे मामलों में न्याय होता हुआ दिखना भी चाहिए। जुलाई माह में प्रकाश में आया यह पैगासस जासूसी कांड सही मायने में देश के लोगों की निजता पर एक बड़ा हमला है। विश्व भर के 10 देशों के 50 हजार लोगों के फोन कॉल सुना जाना या टेप किया जाना, उनका डाटा चोरी किया जाना जिसमें भारत के भी 300 लोग शामिल है कोई मामूली घटना नहीं है इसके पीछे क्या उद्देश्य रहा होगा? यह जासूसी किसने कराई? क्यों कराई? अगर सरकार ने कराई तो वह इसे स्वीकार क्यों नहीं कर रही है? आदि आदि अनेक सवाल है जिनका कोई उत्तर सरकार द्वारा नहीं दिया जा रहा है और तो और सरकार तो इस बात को भी स्वीकार नहीं कर रही है कि इस जासूसी में उसने पैगासस का इस्तेमाल किया है। यही कारण है कि जिस मामले से देश के सभी नागरिकों की निजता का मुद्दा जुड़ा हो उसे न्यायपालिका हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा और गोपनीयता के हवाले पर नजरअंदाज नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच के लिए अब एक्सपर्ट कमेटी गठित कर दी है देखना होगा कि क्या इसकी जांच किसी अंजाम तक कब तक पहुंच पाती है। सत्तापक्ष तो इस मुद्दे पर विपक्ष को उल्टा हड़काता रहा है उम्मीद की जानी चाहिए कि मैगासस जासूसी मामले में अब न्याय होगा भी और न्याय होता दिखेगा भी।

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