जारी रहेगा गरीब सवर्णों को आरक्षण

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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र के फैसले को सही ठहराया
5 सदस्यीय पीठ में 3—2 से फैसले पर लगी मुहर
विशेष संवाददाता नई दिल्ली। सामान्य वर्ग के गरीबों को नौकरियों और शिक्षा में दिए जाने वाला 10 फीसदी आरक्षण जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय पीठ ने आज केंद्र सरकार के फैसले को संविधान सम्मत ठहराते हुए 3—2 से अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी तथा केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली सभी 40 याचिकाओं को खारिज कर दिया।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार द्वारा 2019 में स्वर्णो के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई थी जिसका प्रस्ताव संसद से पारित होने के बाद संविधान में 103वेें संशोधन के जरिए अनुच्छेद 15—16 में बदलाव किए गए थे। केंद्र सरकार के इस फैसले को असंवैधानिक और मूल भावना के खिलाफ बताकर 40 याचिकाएं दायर की गई जिन पर चीफ जस्टिस यू यू ललित की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय पीठ ने 3—2 से अपनी मुहर लगा दी। जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी एवं जस्टिस पारदी वाला ने केंद्र सरकार के फैसले को संविधान की मूल भावना और सामाजिक समानता की भावना के अनुरूप बताते हुए इसे सही ठहराया गया वही जस्टिस एस रविंद्र भटृ ने इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया। चीफ जस्टिस यू यू ललित ने भी रविंद्र भटृ की भावनाओं के साथ अपनी सहमति जताई। पांच सदस्यीय पीठ के तीन सदस्यों की सहमति के बाद गरीब सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण जारी रहने का रास्ता साफ हो गया।
यहां यह उल्लेखनीय है कि संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तय है। अब तक एससी, एसटी और ओबीसी कैटेगरी के तहत जो आरक्षण दिया जाता है वह एससी को 15 फीसदी तथा एसटी को 7.5 फीसदी और ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिया जाता है। याचिकाकर्ताओं द्वारा इसी को आधार बनाते हुए इसको असंवैधानिक बताया जा रहा था तथा इसे रद्द करने की मांग की गई थी। सात दिन तक चली सुनवाई के बाद पीठ द्वारा 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रखा गया था।
चीफ जस्टिस यू यू ललित का आज अंतिम कार्यकाल दिवस था जिसके कारण आज इस मामले पर फैसला आना तय था। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस फैसले से जातीय आधार पर मिलने वाले आरक्षण की प्रवृत्ति कमजोर होगी जजों द्वारा अपने फैसले में स्पष्ट कहा गया है कि स्वर्ण वर्ग में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जिनकी आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर है और वह सामाजिक समानता के आधार पर आरक्षण के अधिकारी हैं। उन्होंने केंद्र सरकार के आर्थिक आधार पर स्वर्णाे को आरक्षण के फैसले को सही ठहराया है।

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