खतरे की घंटी

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कोरोना कि जिस तीसरी लहर के संभावित खतरे को लेकर बीते एक माह से डॉक्टर और विशेषज्ञ लगातार सतर्क कर रहे हैं उसे गंभीरता से लिया जाना जरूरी है। बीते कुछ दिनों से देश के कोने—कोने से भीड़ की जो तस्वीरें सामने आ रही है वह खौफनाक है। पहली लहर के बाद जिस तरह फरवरी में हमने मान लिया था कि कोरोना खत्म हो चुका है हम एक बार फिर उसी गलती को दोहरा रहे हैं। यह वही समय था जब कोरोना की दूसरी लहर शुरू हो रही थी और देखते ही देखते मार्च अंत तक पुरे देश में हाहाकार मच गया था। हैदराबाद यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों द्वारा किए गए विश्लेषण में कहा गया है कि देश में 4 जुलाई से तीसरी कोरोना लहर की शुरुआत हो चुकी है। विशेषज्ञों का कहना है कि बीते 464 दिन के संक्रमण और मौतों के आधार पर वह इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि यह वही समय है जब बीते फरवरी माह में हर रोज आंकड़े थोड़ा ऊपर नीचे हो रहे थे। बीते 20 दिनों से संक्रमण और मौतों का आंकड़ा मध्यमान के आसपास घूम रहे हैं हर रोज 35 से 40 हजार के बीच नए केस सामने आ रहे हैं और मौतों की संख्या भी 100 से डेढ़ सौ के बीच रही है। संकेत साफ है कि कोरोना की दूसरी लहर समाप्त होने से पहले ही तीसरी लहर ने अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। अभी भी देश में साढे़ चार लाख से अधिक सक्रिय मरीज हैं। अब यह संख्या नीचे आती नहीं दिख रही है। देश में अब आर आर यानी रिकवरी रेट फिर से घटना शुरू हो गया है, जितने मरीज ठीक हो रहे हैं उससे अधिक नए केस आने लगे हैं। भले ही अभी यह स्थिति कुछ राज्यों तक सीमित सही लेकिन चिंताजनक है। क्योंकि इसका दायरा बढ़ने में देर नहीं लगती है। दूसरी लहर के बाद जिस तरह की लापरवाही बरती जा रही है उसे देखते हुए अगस्त के अंत तक देश में फिर संक्रमण की गति तेज होने की बात कही गई है। बात चाहे मसूरी व धर्मशाला में उमड़ते पर्यटकों की हो या फिर जगन्नाथ रथ यात्रा में उमड़ती भीड़ और कांवड़ मेले के आयोजन की जिसमें करोड़ों की भीड़ उमड़ती है। बात चाहे दिल्ली सहित तमाम राज्यों के बाजारों की हो या फिर मंडियों की भीड़ द्वारा कोविड गाइडलाइनों की जिस तरह से धज्जियां उड़ाई जा रही है वह भावी खतरे की घंटी है। इस खतरे के मद्देनजर न सिर्फ केंद्र सरकार और देश की न्यायपालिका द्वारा तथा डॉक्टरों व विशेषज्ञों द्वारा आगाह किया जा रहा है लेकिन उसका कोई असर होता नहीं दिख रहा है। खास बात यह है कि दूसरी लहर के दौरान हम एक भीषण त्रासदी से रूबरू हो चुके हैं फिर भी मानने को तैयार नहीं है। नेता और राजनीतिक दल इस स्थिति में भी धार्मिक यात्राओं के आयोजन की अनुमति देकर अपना वोट बैंक साधने में लगे हुए हैं ऐसी स्थिति में चारधाम यात्रा, कांवड़ यात्रा जैसी गतिविधियों की अनुमति आग से खेलने के बराबर ही है अगर कोई राज्य सरकार इसकी परवाह नहीं करती है तो न्यायालय को इस तरह की गतिविधियों पर कड़ाई से रोक लगाने की जरूरत है। वरना इसके भयंकर दुष्परिणाम भोगने पड़ेंगे। टीकाकरण से तीसरी वेब से सुरक्षा की उम्मीद थी वह भी पूरी होती नहीं दिख रही है तीसरी लहर के पीक तक आधी आबादी का भी टीकाकरण संभव नहीं दिख रहा है। इसलिए स्वयं की सतर्कता और भी ज्यादा जरूरी है।

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