बढ़ती महंगाई से कोहराम मचा हुआ है। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों ने इस मुद्दे पर खामोशी ओढ़ रखी है। देश में इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक दलों कें प्रदर्शन लगातार जारी हैं। कोरोना की मार से देश की अर्थव्यवस्था पहले ही डावंाडोल चुकी है और बेरोजगारी बढ़ी हैं वहीं उघोग धंधों और व्यापार की स्थिति भी नाजुक ही मानी जा रही है। ऐसे में अब बढ़ती महंगाई ने लोगों की दिक्कतें और भी बढ़ा दी हैं। पेट्रोल डीजल और रसोई गैस की कीमतें अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। हालांकि पिछले दिनों हुए पांच राज्यों में चुनावों से पहले तक महंगाई की स्थिति कुछ संभली हुई दिखाई दे रही थी लेकिन चुनाव संपन्न होने के बाद एक बार फिर महंगाई दर में उछाल आता दिखाई दे रहा है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि लोग अब अपनी जरूरतों में कटौती करने पर विवश हो रहे हैं। पेट्रोल—डीजल की कीमतों का असर हर आम आदमी के जीवन को प्रभावित कर रहा है। माल भाड़ा और किराया वृद्धि के कारण आम उपभोग की वस्तुओं की कीमतें भी लगातार बढ़ती जा रही है। जिससे समाज का कोई भी वर्ग अछूता दिखाई नहीं दे रहा है। रसोई का बजट गड़बड़ाने से लेकर किसान और ट्रांसपोर्ट व्यवसाय के साथ—साथ उघोग धंधों पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। रसोई गैस का सिलेंडर हजार रुपए तक पहुंच चुका है। आज कोई सी भी दाल 100 रूपये किलो से नीचे नहीं है। खाघ तेल की कीमत 100 रूपये प्रति लीटर के आसपास थी डेढ़ सौ पार हो चुकी है। भले ही सरकारों द्वारा किसानों की आय दोगुनी करने का ढिंढोरा पीटा जा रहा हो लेकिन वह 100 रूपये के आसपास प्रति लीटर डीजल खरीद कर खेती करेगा तो उसकी क्या हालत होगी इसे समझने को कोई भी तैयार नहीं है। सरकार अपने टैक्स में कोई कटौती करने को तैयार नहीं जबकि इसके अलावा तेल की कीमतों में राहत का कोई उपाय फिलहाल दिखाई नहीं दे रहा है। तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण ट्रांसपोर्ट व्यवसाय भी बेहाल है अब चार धाम यात्रा शुरू होने वाली है और ट्रांसपोर्ट व्यवसाई अपना रेट बढ़ा चुके हैं उनका कहना है कि जब तेल महंगा हो गया तो इसमें हम भी क्या कर सकते हैं। बीते दिनों कांग्रेस ने लोकसभा में इस मुद्दे पर हंगामा काटा था। केंद्र व राज्य सरकारों को इस दिशा में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। भले ही राजनीतिक दल इस मुद्दे को अपने राजनीतिक हितों के लिए उछाल रहे हो लेकिन महंगाई अब आम आदमी की बेचैनी को उस हद तक बढ़ा चुकी है कि उसे भाजपा के अच्छे दिन लाने और सबका साथ सबका विकास का नारा बेमानी लगने लगा है।