आपने किस देश जाति और धर्म में जन्म लिया तथा आपकी आर्थिक और सामाजिक स्थितियां कैसी रही अथवा आप कितने साल जिए? आपके जन्मदाता कौन थे वह क्या करते थे? इनमें से कोई भी सवाल कुछ मायने नहीं रखता है। अगर कोई बात मायने रखती है तो वह सिर्फ यह बात है कि आपने अपना जीवन किन विचारों और सिद्धांतों के साथ जिया और अपने समाज के लिए क्या किया अथवा क्या दिया। बस इसी आधार पर लोग आपको याद करेंगे। पोप फ्रांसिस अब हमारे बीच नहीं रहे। 88 वर्ष का लंबा जीवन उन्होंने जिन मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं के साथ जिया अब उनके जाने के बाद पूरा विश्व उन्हें दया करुणा की प्रतिमूर्ति और सांप्रदायिक सौहार्द के ध्वज वाहक के रूप में उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है। निश्चित तौर पर उन्होंने अपने जीवन काल में एक नहीं अनेक ऐसे काम किये और अनेक संवेदनशील मुद्दों पर अपने विचार बेबाकी और निडरता के साथ सबके सामने रखें जो किसी सामान्य व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। जब दुनिया भर के देश परमाणु हथियारों की होड़ में जुटे थे तब उन्होंने परमाणु हथियार रखने को अनैतिक बताया था। कैथोलिक चर्च में जब बच्चों के यौन शोषण का मामला सामने आया था उन्होंने पादरियों के इस कृत्य को न सिर्फ अनैतिक कृत्य बताया था बल्कि इसके लिए माफी तक मांगने में कोई संकोच नहीं किया था क्या किसी धर्मगुरु द्वारा इतना साहस दिखाया जा सकता है। इजरायल द्वारा गाजा में की जाने वाले बमबारी का जिस तरह उन्होंने खुला विरोध किया तथा कहा कि गाजा में मरने वालों के लिए हर दिन प्रार्थना की जानी चाहिए उन्होंने इजराइल से सीज फायर की अपील की और हमास से बंधकों को रिहा करने को कहा। वह अपने पूरे जीवन काल में युद्ध हिंसा की निंदा करते रहे तथा दया और करुणा का संदेश विश्व को देने वाले पोप फ्रांसिस का स्पष्ट मत था कि धर्म और समाज के लोगों को धार्मिक तथा विचार की अभिव्यक्ति होनी चाहिए। सत्ता भय से नहीं परस्पर प्रेम और सद्भाव से चलनी चाहिए। मारगे्रट लोगों के प्रति हमेशा उनके मन में दया और करुणा का भाव रहा तथा पश्चिम बंगाल के रोग्ंिहया मुसलमानों को लेकर हमेशा चिंतित रहे तथा इसे एक त्रासद स्थिति बताते रहे। कोरोना काल में जब पूरा विश्व जीवन की जंग लड़ रहा था उस दौर में जब मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा वैक्सीन का विरोध किया जा रहा था तब उन्होंने कहा था कि स्वास्थ्य एक नैतिक जिम्मेदारी है तथा हम सभी को अपने और अपने आसपास के लोगों का भी ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने खुलकर वैक्सीन का विरोध करने वालों की निंदा की थी। गर्भपात और समलैंगिकता जैसे मुद्दों पर उन्होंने बेबाकी से अपने विचार विश्व के सामने रखे। पोप फ्रांसिस सिर्फ एक ईसाई धर्म प्रचारक कभी नहीं रहे। उन्होंने दया और करुणा तथा इंसानियत को ही अपना धर्म माना और दृढ़ता के साथ इस मार्ग का अनुसरण भी किया। अभी चंद महीने पहले एक उघमी रतन टाटा की अंतिम विदाई पर हमने उनके लिए जिस शोक संवेदनाएं प्रकट करते हुए देश और दुनिया को देखा था ठीक वैसे ही शोक संवेदनाएं आज हम पोप फ्रांसिस की अंतिम विदाई के समय देख रहे हैं। भले ही उनके कार्यक्षेत्र और भाषा श्ौली अलग रहे हो लेकिन मानवता की पाठशाला से इन ध्वजवाहकों को समाज कभी नहीं भूल सकता है। जो दुनिया को यह सिखाते हैं कि मानवता से बड़ा न व्यक्ति होता है न कोई सत्ता।