कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने एक संवाद के दौरान कहा है कि वह स्वयं को एक नेता के रूप में नहीं सत्य के साधक के रूप में देखते हैं। इसके साथ ही उन्होंने एक और अहम बात कही है कि उनके परिवार का राजनीतिक दर्शन रहा है सत्य की राजनीति करना। वह महात्मा गांधी और पंडित नेहरू की सत्य की राजनीति और आदर्श विचारों पर चलते रहेंगे भले ही इसके लिए उन्हें इसकी कितनी भी बड़ी कीमत चुकानी पड़े। वर्तमान दौर में कुछ नेताओं द्वारा उनके इस संवाद को अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना माना जा सकता है। लेकिन सत्य और अहिंसा का यह दर्शन जिसने मोहनदास करमचंद को महात्मा गांधी बनाया और सिद्धार्थ को भगवान बुद्ध बनाया इस बात की पुष्टि जरूर करता है कि सत्यमेव जयते कभी असत्य नहीं हो सकता है। राहुल गांधी एक नेता होकर भी अगर रामचेत मोची के साथ बैठकर बात कर सकते हैं यह वर्तमान राजनीतिक दौर में कुछ अलग हटकर जरूर है। तथा रामचेत मोची से और बिल गेट्स से मिलते समय उनकी जिज्ञासा और मनोभाव समान रहते हैं। तो इसे राहुल की अच्छी और परिपक्व सोच माना जा सकता है। राहुल गांधी को इसके लिए कोई बड़ी कीमत नहीं चुकानी पड़ेगी इस संभावना से कोई इनकार इसलिए भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि सत्य अनमोल सोच है और अनमोल कुछ भी अगर होता है तो उसकी कीमत भी बहुत बड़ी ही होती है। हम कभी जब बच्चे होते हैं तो तब कई बार सत्यवादी सम्राट हरीशचंद्र का मंचन हमने देखा है जिन्हें अपनी सत्य निष्ठा व सत्य वचनों के कारण डोम के यहां नौकरी करनी पड़ती है और पुत्र रोहिताश की सर्पदंश से मृत्यु होने पर अपनी पत्नी की आधी साड़ी शवदाह ग्रह कर के रूप में लेने पर बाध्य होना पड़ता है। तो इसमें कोई संदेह भी नहीं है सत्य के अनुगामियों को बहुत कुछ झेलना पड़ता है। महात्मा गांधी ने भी इसकी बड़ी कीमत चुकाई यह बात अलग है कि आज पूरी दुनिया के लोग उनके सत्य अहिंसा के दर्शन को झुक कर सलाम करते हैं। राहुल गांधी जिस सत्य की राजनीति की बात कर रहे हैं वह इसलिए भी बहुत मुश्किल लक्ष्य है क्योंकि वर्तमान दौर का समय महात्मा गांधी और बुद्ध का समय नहीं है आज जब राजनीति का सारा खेल झूठ फरेब तथा मिथ्या प्रचार के इर्द—गिर्द घूम रहा हो और सत्ता संविधान और न्यायपालिका के अस्तित्व को समाप्त करने पर आमादा हो तथा बेईमानी और भ्रष्टाचार का दबदबा हो सत्य की राजनीति करना भी मुश्किल हो चुका हो ऐसे हालत में सत्य की राजनीति पर अमल करना अत्यंत ही दुर्लभ प्रतीत होता है। जिन महापुरुषों के आदर्शों पर चलने की बात राहुल गांधी कर रहे हैं उन महात्मा गांधी के बारे में अभी बीते दिनों देश के प्रधानमंत्री ने कहा था कि महात्मा गांधी को गांधी पर फिल्म बनने से पहले जानता ही कौन था उनके इस बयान से वर्तमान की राजनीति की सोच को परखा जा सकता है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर समाजसेवी अन्ना हजारे का दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन वाला आंदोलन भी आपको याद होगा। जिससे आम आदमी पार्टी का उदय हुआ इसके संस्थापक अरविंद केजरीवाल का कथन था कि राजनीति अगर कीचड़ है तो इसे साफ करने के लिए कीचड़ में उतरना ही पड़ेगा। वह कीचड़ को कितना साफ कर सके या उसके दलदल में खुद कितना फंस गए यह आप खुद सोचिए। राहुल गांधी के बारे में बस यही कहा जा सकता है कि उन्होंने अपने लिए एक बहुत कठिन रास्ता चुना है।