उत्तराखंड महिला आयोग की अध्यक्ष ने पुलिस में एक तीन बच्चों की मां और एक दो बच्चों के बाप के भाग जाने व लिव इन में रहने का मामला दर्ज कराया है। उन्होंने पुलिस से गुहार लगाई है कि इन दोनों की तलाश कर आयोग में पेश किया जाए। महिला जिसके तीन बच्चे हैं और जो प्रेमी संग फरार है उसका पति इसलिए परेशान है कि अब अपने परिवार की कैसे देखभाल करें बच्चों को कैसे पाले और क्या समझाएं। महिला के साथ फरार व्यक्ति की पत्नी जिसके पास दो बच्चे हैं उसके सामने भी बच्चों के भरण पोषण और उन्हें पढ़ाने लिखाने की समस्या है। ऐसी ही एक खबर यूपी के सिद्धार्थनगर से भी सामने आई है जहां एक पांच बच्चों की मां एक चार बच्चों के बाप के साथ भाग गई। जिस पुरुष के साथ वह भागी उसकी पत्नी के पास तीन बेटियां हैं और उसकी समझ से परे है कि वह अपने एक बेटे और तीन बेटियों को लेकर कहां जाए तथा क्या करें? झांसी से आई यह खबर और भी अधिक हैरान करने वाली है जहां एक पति रात के एक बजे पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट दर्ज कराता है कि उसकी पत्नी के किसी अन्य के साथ अवैध संबंध है और वह अब उल्टा मुझे ही धमकी दे रही है कि चुप रहना वरना ड्रम में पैक कर दूंगी। पुलिस उसके साथ घर जाती है तो उसकी पत्नी व उसके मित्र को गिरफ्तार कर थानेे लाती है। हमें इन सब घटनाओं का उल्लेख करना इसलिए जरूरी था क्योंकि इनकी रोशनी में हम दरकते रिश्तों और खंड—खंड होते परिवारों का दर्द समझ सकते हैं। यह घटनाएं तो उधारण मात्र है हमारे आसपास समाज में बीते कुछ सालों से जो कुछ भी घटित हो रहा है वह समाज और परिवारों के विघटन की तस्वीरों को दिखाने वाला ही नहीं है बल्कि समाज के नैतिक पतन की कहानी को भी बताता है। रिश्ते और संबंध बिना विश्वास के नहीं चल सकते हैं। रिश्ता भले ही कोई भी हो अगर भरोसे की दीवार नहीं है तो फिर आप छत की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। अभी मेरठ में एक महिला ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या कर उसका शव सीमेंट में डालकर एक ड्रम में जमा दिया था। इस घटना को अंजाम देने के बाद अपराधियों द्वारा पिकनिक पर जाना, जश्न मनाना और अय्याशी करना इंसानियत और मानवता को तार—तार कर देने वाला है। इसी दौरान एक अन्य घटनाक्रम में एक नव विवाहिता द्वारा अपने हनीमून की रात को ही अपने पति को मौत के घाट उतारने की खबर आती है। सवाल यह है कि या तो फिर अब हमारे समाज से संस्कार, दीन, धर्म इंसानियत और मानवता सबका जनाजा उठ चुका है और अब नाते रिश्ते घर परिवार की अवधारणा कतई भी बेमानी हो चुकी है। अगर यही सब अब हमारे समाज का सच है तो ऐसे समाज का कोई फायदा नहीं है और जिस समाज का चरित्र नहीं हो सकता उसका अस्तित्व भी समाप्त होना तय होता है। 21वीं सदी के भारत के समाज की यह तस्वीर निश्चित रूप से डराने वाली है।