प्रयागराज महाकुंभ में भगदड़ की घटना में जिन्होंने अपनों को खोया है उसका दर्द सिर्फ परिजन ही महसूस कर सकते हैं। इस दुखद घटना के बाद शासन प्रशासन और व्यवस्थाओं पर सवाल उठना भी लाजमी है। लेकिन इस अत्यंत ही दुखद व हृदय विदारक घटना पर न तो राजनीति की जानी चाहिए और न असंवेदनशील बयान बाजी होनी चाहिए। यह अत्यंत ही दुर्भाग्यपूर्ण है इसे लेकर शासन में बैठे कुछ मंत्रियों व प्रशासन में बैठे अधिकारियों तक बेतुकी बयान बाजी की जा रही है। कोई कह रहा है कि इतने बड़े आयोजनों में ऐसी छोटी—मोटी दुर्घटनाएं तो होती ही रहती हैं अगर पुलिस का कोई अधिकारी कहे कि महाकुंभ में भगदड़ जैसी कोई घटना हुई ही नहीं तो इससे ज्यादा असंवेदनशील कुछ और नहीं हो सकता है। कुछ लोग तो इसे सनातन विरोधियों की एक साजिश तक बता रहे हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है। सच को न तो बहुत समय तक छुपाया जा सकता है और न दबाया जा सकता है। इस हादसे के पीछे के कारण तथा इसमें हुए जान—माल की वास्तविक क्षति देर सबेर सभी के सामने आ ही जाएगी। आमतौर पर कहीं एक छोटा सा भी आयोजन होता है जिसमें हजारों की संख्या में लोग जमा होते हैं तो उसमें भी सुरक्षा को लेकर तमाम व्यवस्थाएं की जाती हैं, फिर महाकुंभ जैसे बड़े आयोजन जिसमें एक दिन में 8 से 10 करोड लोगों की उपस्थिति की पूर्ण जानकारी हो उसके लिए शासन—प्रशासन ने कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं की यह सच नहीं है। लेकिन इस व्यवस्था में कहीं न कहीं कोई बड़ी चूक जरूर हुई है इसे लेकर अब शासन—प्रशासन द्वारा भी स्वीकार किया जा रहा है। इसकी जांच की कमेटी का गठन किया जाना तथा मृतक आश्रितों के लिए 25—25 लाख के मुआवजे की घोषणा के साथ महाकुंभ के मेला क्षेत्र से लेकर सड़कों तक कहीं भी जाम की स्थिति न बनने देने तथा निरंतर आवागमन जारी रखने के जो निर्देश सीएम योगी द्वारा दिए गए हैं तथा मृतकों के शव उनके घर पहुंचाने और घायलों के इलाज का खर्चा सरकार द्वारा वहन किए जाने की जो भी घोषणाएं की गई वह सरकार की संवेदनशीलता को दिखाती है। लेकिन इस सबके बीच यह सवाल भी सोचनीय है कि सत्ता द्वारा किसी भी धार्मिक आयोजन को राजनीतिक शक्ति परीक्षण की उसे तरह से प्रयोगशाला भी नहीं बनाया जाना चाहिए जिस तरह से वर्तमान के महाकुंभ को बनाया गया। इस महाकुंभ को लेकर जिस तरह यह प्रचारित किया गया कि 144 साल बाद ऐसा दुर्लभ संयोग ग्रहों का बन रहा है कि जो इस बार कुंभ स्नान करेगा उसके सात जन्मों के पाप मिट जाएंगे। यह सभी जानते हैं कि भीड़ का कोई तंत्र नहीं होता अधिक से अधिक लोग महाकुंभ में आए जिससे कोई नया विश्व रिकॉर्ड बन सके इसकी चाहत में अपार भीड़ को इकट्ठा करना तो आसान है लेकिन व्यवस्थित रखना संभव नहीं है। जो लोग इस तरह का प्रचार कर रहे हैं कि आस्था को किसी व्यवस्था की जरूरत नहीं होती निसंदेह वह लोग आपकी आस्था व जीवन के साथ खिलवाड़ ही कर रहे हैं। इस बात को आम जनमानस को भी समझने की जरूरत है। इस हादसे का जो कारण रहा है लेकिन अनियंत्रित अपार भीड़ और उसे पर हावी हुई अव्यवस्थाएं ही है। महाकुंभ का यह हादसा गनीमत है भीड़ की उपस्थिति के लिहाज से छोटा कहा जा सकता है लेकिन इससे बड़ा सबक लेने की जरूरत है क्योंकि अभी यह कुंभ बहुत लंबा चलेगा और भविष्य में कोई और हादसा पेश न आए इस पर शासन—प्रशासन ही नहीं अपितु श्रद्धालुओं को भी मंथन चिंतन की जरूरत है।



