राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (एनईपी) लागू करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन गया है। बीते कल मुख्यमंत्री धामी ने राज्य के 4 हजार से अधिक आंगनबाड़ी केंद्रों में प्री प्राइमरी कक्षाओं जिसे बाल वाटिका नाम दिया गया है, की शुरुआत कर दी गई है। समय और काल के अनुसार भले ही हमारी शिक्षा पद्धति में बदलाव आया हो तथा उसके उद्देश्य बदले हो लेकिन शिक्षा की महत्ता में कभी कमी नहीं आई है। भारत वर्ष में आज भी हमारी प्राचीन सनातनी गुरुकुल शिक्षा प्रणाली अपना वजूद बनाए हुए हैं। जिसमें हम शिक्षा के महत्व को ट्टएषा न विघा न तपो न दांनं ज्ञांन न शींल न गुणो न धर्मः ते मृत्यु लोके भूविभार भूता मनुष्य रूपेण मृगाश्चरिंति, उक्त श्लोक के माध्यम से वर्णित किया गया है। शिक्षा के बिना ज्ञान, विज्ञान, चरित्र, दान और धर्म तथा धन कुछ भी संभव नहीं है जिनके पास शिक्षा नहीं है वह प्राणी (मनुष्य) बिना पूछ वाले पशु की तरह इस धरती पर बोझ समान है। यह अत्यंत ही दुखद और त्रासदी है कि देश में आजादी के बाद शिक्षा क्षेत्र में आशातीत विकास नहीं हो सका। देश की एक तिहाई आबादी अभी भी शिक्षा के घोर अंधकार में जी रही है। दरअसल शिक्षा को देश के लोगों द्वारा नौकरी का जरिया से अधिक कभी कुछ नहीं समझा गया। आज भी 85 फीसदी युवा सिर्फ रोजगार के लिए ही पढ़ रहे हैं ज्ञानार्जन शिक्षा का उद्देश्य नहीं है। और बीते कुछ दशकों में शिक्षित युवा बेरोजगारों की फौज खड़ी होने के कारण अब युवाओं का शिक्षा से भी मोहभंग होता जा रहा है उनकी सोच में यह बात आ चुकी है कि पढ़ लिख कर क्या होगा पढ़ाई में समय व पैसा बर्बाद करने से बेहतर है कि सड़क किनारे चाय पकौड़ी की दुकान खोल लो। नई शिक्षा नीति के क्या परिणाम होंगे? यह तो समय ही बताएगा क्योंकि देश में शिक्षा को लेकर आए दिन नए—नए प्रयोग होते रहते हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन भी तो एक ऐसा ही प्रयोग था जिसका क्या लाभ हुआ इसकी कभी किसी ने भी समीक्षा करने की जरूरत नहीं समझी। अब इन्हीं आंगनबाड़ी केंद्रों से नई शिक्षा नीति की भी शुरुआत हो रही है। यहां शुरू होने वाली प्री प्राइमरी क्लासेज दरअसल पब्लिक स्कूलों की नर्सरी क्लासों की नकल ही है। इस नकल के माध्यम से उत्तराखंड के वह सैकड़ों प्राइमरी स्कूल जो बंद हो चुके हैं क्या फिर गुलजार हो सकेंगे? या फिर इन सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को नौ निमा इक्यासी का ज्ञान हो जाएगा। सरकार खुश है क्योंकि उसने उत्तराखंड को एनईपी लागू करने वाला पहला राज्य बना दिया है। आंगनबाड़ी की कार्यकत्रियां भी खुश हैं क्योंकि उन्हें भी सरकारी स्कूल शिक्षिकाओं की तरह वेतन व अन्य सुविधाएं मिल सकेंगी। बच्चों का भविष्य कितना बन पाता है इसकी कोई गारंटी अभी नहीं दी जा सकती।