महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार के अस्तित्व पर जो संकट के बादल दिख रहे हैं वह कोई अप्रत्याशित नहीं है। नवंबर 2019 में जब शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन से इस सरकार का गठन हुआ था तभी से इस सरकार के अस्तित्व पर सवालिया निशान लग रहे थे। खास बात यह है कि वर्तमान समय में शिवसेना के प्रमुख नेता और मंत्री एकनाथ शिंदे जो बगावत का झंडा लेकर निकल पड़े हैं। यह वही शिंदे हैं जिन्होंने इस सरकार के गठन में अहम भूमिका निभाई थी। उनकी नाराजगी के संकेत काफी समय पहले से मिलने शुरू हो गए थे लेकिन उद्धव ठाकरे इससे बेपरवाह बने रहे। पर्याप्त संख्या बल के बाद भी शिवसेना के विधायक की क्रास वोटिंग के कारण पहले राज्यसभा चुनाव और फिर महाराष्ट्र विधान परिषद चुनाव में भाजपा प्रत्याशियों की जीत के बाद ही यह सुनिश्चित हो गया था कि अब महाराष्ट्र में भी वही होने वाला है जो मध्य प्रदेश और कर्नाटक में हुआ था। इस संकट ने एक बार फिर से गठबंधन की राजनीति और अवसरवादी राजनीति की बहस को केंद्र में ला दिया है। एकनाथ शिंदे 35 विधायकों के साथ इन दिनों सफर पर हैं कल तक उनका ठिकाना गुजरात के सूरत में था और अब उनका काफिला गुवाहाटी पहुंच चुका है। उधर पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस दिल्ली में केंद्रीय नेताओं के साथ अपनी सरकार गठन की तैयारी में जुटे हुए हैं। कल तक शिवसेना नेता इस बात का दावा कर रही थी कि कोई बड़ा तूफान आने वाला नहीं है सब कुछ ठीक हो जाएगा। वह नेता अब यह कहते दिख रहे हैं कि अधिक से अधिक क्या होगा शिवसेना की सत्ता चली जाएगी पार्टी की प्रतिष्ठा से बड़ा कुछ नहीं होता है। इस बात से यह साफ संकेत मिलते है कि अब शिवसेना को भी यह भरोसा हो चुका है कि वह अपनी सरकार को बचा नहीं पाएगी। एक सवाल यह भी है कि सत्ता में आने के बाद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे अनिल देशमुख और उसके बाद नवाब मलिक को जेल जाना पड़ा वह सरकार के माथे पर एक कलंक की तरह था। जिस नैतिक और पार्टी की प्रतिष्ठा की बात आज शिवसेना के नेता कर रहे हैं उस समय वह कहां थे, उस समय क्यों वह अपने कर्तव्य बोध से बचते रहे। अब शिवसेना को जब यह स्पष्ट हो चुका है कि उनकी सरकार का बच पाना मुश्किल है तो वह विधानसभा को भंग कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कराने का सपना देख रहे हैं। लेकिन यह सब राज्यपाल के संवैधानिक अधिकार क्षेत्र में आता है अतः यह संभव नहीं है। जहां तक भाजपा की बात है जिसके पास 108 विधायक है वह पूर्ण बहुमत के सवाल पर यह कहती रही है कि विपक्ष के 35 नहीं 60 विधायक उसके साथ है। अगर यही सच है तो फिर शिवसेना की सरकार को जाने से और भाजपा को महाराष्ट्र में सरकार बनाने से भला कौन रोक सकता है। राज्यों में सत्ता की यह उल्टा पुल्टी यह भी बताती है कि केंद्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ कोई गठबंधन या मोर्चा भले ही भाजपा को केंद्रीय सत्ता से हटा दें लेकिन वह केंद्रीय सत्ता में भी अधिक समय तक टिका नहीं रह सकता है।