बिगड़ते हालात

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बीते कुछ सालों से सत्ता में बैठे लोगों द्वारा भारत की अर्थव्यवस्था को विश्व में उभरती हुई बड़ी आर्थिक ताकत बताया जा रहा है। लेकिन विश्व पटल पर सबसे मजबूती से उभरती भारतीय अर्थव्यवस्था का असल हाल क्या है? उस की जमीनी हकीकत को कोई देखने को तैयार नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अभी अर्थव्यवस्था को संभाले रखने के लिए एक ही महीने में दो बार रेपो रेट में वृद्धि की गई। देश में महंगाई की स्थिति पर बात करें तो देश में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों ने कीर्तिमान बना दिया है। खाघ वस्तुओं की महंगाई दर ने आज आम आदमी के जीवन को संकट में डाला हुआ है। बैंक कर्ज महंगे होते जा रहे हैं और महंगाई चरम सीमा पर है। बेरोजगार युवक मारे—मारे फिर रहे हैं। शेयर बाजार बीते एक साल से गोते खा रहा है बीते साल सितंबर में रिकॉर्ड ऊंचाई 6000 पर पहुंचा सेंसेक्स अब 52846 पर पहुंच चुका है। बीते सिर्फ दो दिनों में शेयर होल्डरों का 9.75 लाख करोड़ रुपया डूब गया है। डॉलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। तमाम कोशिशों के बावजूद भी इस रुकावट को रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा है। पहला मर्तबा है जब डॉलर के मुकाबले रुपया 548 पर आ गया है। बीते महीने डालर की कीमत जब 77 रूपये पर पहुंच गई थी तभी से रिजर्व बैंक की चिंता बढ़ी हुई थी। लेकिन अब ऐसी संभावनाएं जताई जा रही है कि एक डॉलर की कीमत 80 रूपये तक पहुंच सकती है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपए की घटती इस कीमत का मतलब देश की अर्थव्यवस्था का और संकट में फंस जाना है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इन दिनों कच्चे तेल की कीमतें भी रिकार्ड ऊंचाई पर लगभग 120 डालर प्रति बैरल के करीब है। भले ही इसका कारण रूस और यूक्रेन के युद्ध को बताया जा रहा हो लेकिन तेल के दाम कम होने के आसार फिलहाल दिखाई नहीं दे रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकारों ने जब तेल पर खूब टैक्स वसूला हो और अपना खजाना भरा हो लेकिन तेल की बढ़ी हुई कीमतों ने आम आदमी का तेल जरूर निकाल दिया है। बाजार में खाघ वस्तुओं की महंगाई दर आसमान पर है। जिसका सबसे बुरा प्रभाव गरीब व मजदूर तबके पर पड़ रहा है। सरकार इस सीजन में गेहूं की सरकारी खरीद में फिसड्डी रही है। गरीबों को मुफ्त राशन खिलाने वाली सरकार के गोदाम में अब मुफ्त खिलाने के लिए राशन नहीं बचा है भले ही सरकार का विदेशी मुद्रा भंडार अभी भरा हो और आने वाले कुछ समय तक वह जरूरतों को पूरा करने में सफल रहे लेकिन कुल मिलाकर न तो देश के आम आदमी और गरीब आदमी के हालात ठीक है और न सरकार की स्थिति बढ़िया है। नोटबंदी, कोरोना तथा अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति कहने को बहुत से कारण खराब हालात के लिए जिम्मेदार बताए जा सकते हैं लेकिन समस्या का समाधान क्या है? यह सबसे जरूरी बात है।

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