चुनाव है तो सब चकाचक

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आपने अमूमन अपने शहरों में देखा होगा कि कल शाम तक जो सड़क उबड़—खाबड़ पड़ी थी आप जब सुबह उठकर आते हैं तो आपको एकदम चकाचक मिलती है। हैरान परेशान आप जानना चाहते हैं कि आखिर यह चमत्कार रातों—रात कैसे हो गया पता चलता है कि कुछ विदेशी राष्ट्राध्यक्ष किसी कार्यक्रम में हिस्सा लेने आ रहे हैं जो इसी सड़क से गुजरेंगे। हमारे देश की राजनीति का असली सच भी शायद कुछ इसी तरह का है। हर 5 साल बाद जब चुनाव आने वाले होते हैं तो कभी इंडिया साइनिंग करने लगता है तो कभी उसके अच्छे दिन आ रहे होते हैं। कभी देश को गरीबी से निजात मिल जाती है तो कभी बेरोजगारी से। यहां जितनी आसानी से छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा काम हो जाता है वैसा शायद विश्व के अन्य किसी भी मुल्क में हो ही नहीं सकता है। क्योंकि इस देश के नेता इतने चमत्कारी या यूं कहिए कि प्रतिभा के इतने धनी है कि उनके पास हर मर्ज का इलाज है। वह आदर्श ग्राम भी बना सकते हैं और स्मार्ट सिटी भी और तो और अब तो वह विकसित भारत बनाने का दावा भी कर रहे हैं। अपने देश के नेताओं की एक खासियत है कि वह करते कुछ नहीं है। उन्हें सिर्फ बातें करना या भाषण देना आता है या फिर वायदे करना आता है जिसमें उनका कोई मुकाबला नहीं कर सकता है। आप अगर भारत सरकार की बीते 10 साल की उपलब्धियां को लीजिए जिनके बारे में बीते दो महीनो में हजारों करोड़ के विज्ञापन छप चुके हैं धरातल पर इन उपलब्धियां की हकीकत क्या है? पीएम मोदी ने अपने सभी सांसदों से एक—एक गांव गोद लेने को कहा गया था भारत के 303 सांसदों ने गांव तो गोद ले लिए लेकिन इन सांसद गांवों के हालात में क्या कुछ सुधार आया और सांसदों ने क्या कभी उस गांव जाकर एक बार भी उसका हाल जानने की कोशिश की? यह सवाल आप न सरकार से कर सकते हैं और न सांसदो से? क्योंकि वह सिर्फ अपने मन की बात सुनना जानते हैं किसी के मन की बात सुनना उन्हें कतई भी पसंद नहीं है। भारत सरकार द्वारा देश के शहरो को स्मार्ट सिटी बनाने की जो कवायद शुरू की गई थी उसकी हकीकत जानकर किसी को भी हैरानी हो सकती है हाल के एक सर्वे में 47 स्मार्ट सिटी विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में है। इसलिए आगे यह पूछने की तो जरूरत भी नहीं है कि कितने स्मार्ट सिटी बन चुके हैं। अगर आप दून के रहने वाले हैं तो आप अपने मन में यह जरूर सोच रहे होंगे कि आपका दून 2000 से पहले तक जरूर एक स्मार्ट सिटी समझे जाने लायक था। जब से अलग राज्य बना और दून को राज्य की अस्थाई राजधानी बनाया गया तब से इस खूबसूरत शहर की जो दुर्दशा हुई है उसका दर्द दून के सीनियर सिटीजनों की जुबान पर आए बिना नहीं रहता है। खैर बात हो रही थी चुनावी दौर और चुनावी दौर के उन वायदों की जिनका इन दिनों चारों ओर शोर और जोर दोनों दिख रहा है। महिलाओं, युवाओं, किसानों और श्रमिकों के चार वर्ग ऐसे हैं जिनकी चुनाव में भागीदारी और वह किस राजनीतिक दल के पक्ष में खड़े हैं यह बात सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। दून के मतदाताओं को अपने—अपने पालों में खींचने के लिए सभी दल तरह—तरह के लोक लुभावन वायदे भी कर रहे हैं। जैसे बीते चुनावों में होता आया है। हर बार चुनाव परिणामों के बाद देश का मतदाता स्वयं को ठगा सा महसूस करता है आखिर क्यों? इस बार वोट डालने से पहले इस सवाल पर चिंतन जरूर करना अगर आपको जवाब मिल जाए तो समझ लेना अब आपको कोई बेवकूफ नहीं बना सकता और न ठग सकता है।

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