रामराज की चाहत

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राजनीति तेरे रंग हजार। इस बहुरंगी राजनीति के किसी भी रंग को समझ पाना आसान काम नहीं है। राजनीति का अपना कोई धर्म या संविधान तो होता नहीं है जिस पर चलने के लिए राजनीतिक दलों और नेताओं को बाध्य किया जा सके। सभी दल और नेता अपनी सुविधानुकूल अपने फैसले करने को स्वतंत्र होते हैं। भले ही प्रत्यक्ष रूप में उनके द्वारा जनहित और समाजहित तथा राष्ट्रीय हितों को सर्वाेच्च प्राथमिकता के रूप में प्रचारित और प्रसारित किया जाता हो लेकिन सत्ता हित ही उनका एकमात्र उद्देश्य और लक्ष्य होता है। कांग्रेस द्वारा अयोध्या के राम मंदिर में होने वाले प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल न होने का फैसला किया गया है। कांग्रेस का मानना है कि अयोध्या के राम मंदिर को भाजपा ने अपनी राजनीतिक परियोजना बना दिया है। कांग्रेस के नेताओं का कहना यह भी है कि अयोध्या के अर्धनिर्मित राम मंदिर में जो प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम भाजपा द्वारा आयोजित किया जा रहा है वह 2024 के आम चुनाव में लाभ लेने के लिए किया जा रहा है। कांग्रेस के इन तर्कों को भाजपा के नेता भले ही सिरे से खारिज कर रहे हो या फिर प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम में हिस्सा न लेने की बात को हिंदुत्व विरोधी और सनातन विरोधी होने के प्रमाण के तौर पर प्रचारित कर रहे हो और भविष्य में अपने फैसले पर पश्चाताप करने और पछतावा करने की बात कर रहे हो अथवा इस फैसले से कार्यक्रम का बायकॉट की बात कर यह कह रहे हो कि कल देश की जनता इनका बाय काट कर देगी लेकिन कांग्रेस की अपनी सोच और समझ है जो उसकी नजर में ठीक है तथा भाजपा की अपनी सोच और समझ है जो उसकी नजर में ठीक है। रही बात देश की जनता की वह भाजपा और कांग्रेस की नीतियों और नजरिए को किस दृष्टिकोण से देखती और समझती है। भाजपा के लिए राम मंदिर निर्माण का मुद्दा हमेशा राजनीतिक दृष्टिकोण से मुफीद रहा है और रहेगा, देश की आम जनता का इस मुद्दे पर मिलने वाला समर्थन उसकी राजनीति के लिए संजीवनी है जबकि कांग्रेस का भले ही कभी राम मंदिर निर्माण और राम से कभी बैर नहीं रहा हो लेकिन इस पर कोई राजनीतिक लाभ वह न अब तक ले सकी है और न भविष्य में कभी मिलने की संभावना है। भले ही भाजपा के नेता इस बात को स्वीकार न करें कि राम मंदिर उनके लिए कोई राजनीतिक मुद्दा या एजेंडा है लेकिन यह सच से परे है। सही मायने में भाजपा तो चाहती भी यही थी कि कांग्रेस प्राण प्रतिष्ठा में शामिल न हो और हुआ भी वैसा ही, भले ही अब इसका कांग्रेस को चुनाव में नफा हो या नुकसान लेकिन उसने भाजपा नेताओं को राम मंदिर हिंदुत्व और सनातन जैसी मुद्दों पर अपने खिलाफ प्रचार का एक और मौका दे दिया है। कांग्रेस को इससे अब कोई खास फर्क भी पड़ने वाला नहीं है। क्योंकि राजनीतिक स्तर पर उसका जितना भी नुकसान उसे हो सकता था वह हो चुका है। कांग्रेस नेताओं ने राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के न्यौते को ससम्मान अस्वीकार तो कर ही दिया है साथ ही उसकी सोच यह भी है कि देश की जनता को भी उनकी बात कभी न कभी तो समझ में जरूर आएगी। कौन अपने फैसलों पर पछताएंगे और कब किसकी समझ में क्या बात आएगी, आएगी भी या नहीं आएगी यह सब कुछ भविष्य के गर्भ में सही लेकिन देश की राजनीति पर एक बार फिर राम मंदिर का रंग चढ़ा हुआ है यह बात सभी को प्रत्यक्ष रूप में दिखाई जरूर दे रही है। भाजपा के नेता इस रंग को जमाने के लिए अपनी एड़ी चोटी के प्रयासों में जुटे हुए हैं और उसमें वह पूर्णतया सफल भी दिखाई दे रहे हैं। देश की जनता की चाहत है कि अयोध्या में रामलला का दिव्य और भव्य मंदिर भी बन गया और अब रामलला भी अयोध्या के मंदिर में पधारने वाले हैं। देश में राम राज्य की स्थापना भी हो जाए तो अच्छा होगा। मंदिर निर्माण कार्य के पूर्ण होने पर भाजपा के नेताओं को अब राम राज्य की स्थापना को अपने एजेंडा में शामिल जरूर करना चाहिए क्योंकि राम मंदिर निर्माण की इस परिकल्पना का मूल ही राम राज्य की स्थापना में निहित है। राजनीति के तमाम रंगों में अगर किसी रंग में सबसे अधिक चमक हो सकती है तो वह सर्व सुखाय, सर्व हिताय के रंग में ही हो सकती है। भगवान श्री राम सबका कल्याण करें और सभी को सद्बुद्धि प्रदान करें इसकी प्रार्थना इस प्राण प्रतिष्ठा के दौरान सभी देशवासियों को करनी चाहिए।

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