भ्रष्टाचार भी एक चुनावी टूल

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भ्रष्टाचार एक बड़ी राष्ट्रीय समस्या है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए यह राष्ट्रीय समस्या से राजनीति का मुद्दा ज्यादा है। सत्ता में बैठे लोगों द्वारा भले ही इस समस्या के समाधान का प्रयास करने से ज्यादा ध्यान अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को कटघरे में खड़ा करने का रहता है लेकिन यह एक रवायत जैसा हो गया है। अन्ना हजारे ने जब दिल्ली के रामलीला मैदान से भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का बिगुल फूंका था तब सत्ता में बैठे लोगों ने उनका आंदोलन समाप्त करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी सरकार के कई दौर की वार्ताओं के बाद लोकपाल और लोकायुक्त के गठन के लिखित आश्वासन पर यह आंदोलन समाप्त हो गया लेकिन इसके नतीजे पर गौर करें तो वह सिफर ही रहे। देश में लोकायुक्त और लोकपाल जैसे सशक्त भ्रष्टाचार रोधी कानून व व्यवस्था को अभी तक अमल में नहीं लाया जा सका है इस दौरान इस बात पर चर्चा हुई कि भ्रष्टाचार की जड़ में कौन है शासन प्रशासन में बैठे लोग या देश का समाज। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो भ्रष्टाचार को बड़ी समस्या तो बताते हैं तथा अपने राजनीतिक विरोधियों को जेल भिजवाने में भी कतई ढिलाई नहीं बरत रहे हैं लेकिन अपने 10 सालों के शासन में वह भी भ्रष्टाचार को रोकने या कम करने के लिए कुछ नहीं कर पाए हैं। इस बात को सभी जानते हैं कि भ्रष्टाचार की जड़ में शासन और प्रशासन ही है आम जनता को उसके छोटे से छोटे कामों के लिए शासन में बैठे नेता और अधिकारी कैसे थकाते हैं और उन्हें रिश्वत देने पर विवश करते हैं इसकी कहानी किसी से भी छिपी नहीं है। बीते कल दिल्ली की केजरीवाल सरकार और आम आदमी पार्टी, सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद मुश्किलों में फस गई है। बहुचर्चित शराब नीति घोटाले में संजय सिंह को ईडी ने गिरफ्तार कर लिया है उनकी गिरफ्तारी के बाद दिल्ली ही नहीं देश की सियासत में एक बार फिर भारी हलचल पैदा हो गई है। दिल्ली सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे सत्येंद्र जैन जो लगभग डेढ़ साल से जेल में है और उनके बाद उप मुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी जो 8 महीने से जेल में है और उन्हें जमानत तक नहीं मिल पा रही है, के बाद अब आप के तेज तर्रार सांसद संजय सिंह जो संसद में पीएम मोदी और अडानी के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा की घेराबंदी करते रहे हैं, उनकी गिरफ्तारी के विरोध में आप में तो भारी उबाल है ही साथ ही विपक्षी गठबंधन इंडिया के नेताओं की लामबंदी भी शुरू हो गई है। यानी कि आने वाले दिनों में भ्रष्टाचार और सरकारी संस्थाओं के दुरुपयोग के मुद्दे पर राजनीति अपने फुल ऑन मोड में रहने वाली है। विपक्ष का सीधा आरोप है कि केंद्र सरकार विपक्षी एकता से घबराकर नेताओं को जेल में डाल रही है तथा सरकारी एजेंसियों सीबीआई और ईडी का दुरुपयोग कर रही है वहीं भाजपा के नेताओं का कहना है कि अब केजरीवाल की बारी है। कल सांसद संजय सिंह की गिरफ्तारी वाले दिन देश की सर्वाेच्च अदालत की 7 सदस्यीय खंडपीठ ने नोट के बदले वोट में राहत को लेकर सुनवाई के दौरान कहा गया कि आशंका के आधार पर सियासी भ्रष्टाचार की छूट कैसे दी जा सकती है सांसदों और विधायकों को आपराधिक मामलों में जो विशेषाधिकार का कवच मिला हुआ है, उसके दुरुपयोग को क्यों नहीं रोका जाना चाहिए? सवाल यह है कि देश की इस समस्या को देश के नेता कब तक चुनावी टूल के रूप में इस्तेमाल करते रहेंगे क्या कभी इसके समाधान पर कोई सरकार ठोस फैसला कर पाएगी लाखों करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार करने और अरबों खरबों की बेनामी संपत्तियों को बनाने वाले नेताओं और अधिकारियों पर भी क्या कभी बुलडोजर की कार्रवाई होगी?

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