इन मौतों का जिम्मेदार कौन?

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बीते कल शाम ओडिशा के बालेश्वर में हुए भीषण रेल हादसे में 300 लोगों की जान जाने और 900 से अधिक लोगों के घायल होने की पुष्टि रेलवे प्रशासन द्वारा की जा चुकी है इस भीषण दुर्घटना की भयावहता को इस बात से भी समझा जा सकता है कि दुर्घटना के 20 घंटे बाद भी बचाव व राहत कार्य पूरा नहीं हो सका है न ही इस रूट पर यातायात बहाल हो सका है, 100 से अधिक ट्रेनों को रद्द किया जा चुका है। प्रधानमंत्री से लेकर तमाम विपक्षी दलों के नेताओं द्वारा इस पर शोक संवेदनाएं जताई जा रही है तो कुछ लोग कई तरह के सवाल भी उठा रहे हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर इन रेल यात्रियों की मौतों का जिम्मेदार कौन है? रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव मृतकों के परिजनों को 10—10 लाख के मुआवजे की घोषणा कर चुके हैं घायलों का इलाज कराया जा रहा है। घायलों की संख्या इतनी ज्यादा है कि मरने वालों का आंकड़ा कहां तक पहुंचेगा अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। इस हादसे ने देश की रेल व्यवस्था पर भी एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है जिस देश का रेल नेटवर्क एशिया का सबसे बड़ा नेटवर्क हो उस देश में एक ट्रेन हादसे का शिकार हो जाए यह समझा जा सकता है लेकिन एक ही स्थान पर एक ही समय में तीन—तीन ट्रेनों की भिड़ंत हो जाए, रेल प्रशासन की घोर लापरवाही को ही प्रदर्शित करता है। शायद ही कहीं ऐसा होता होगा कि दो ट्रेन एक दूसरे के आमने सामने से भिड़ जाएं अब वह समय नहीं है जब सिग्नल लैंप हुआ करते थे। अगर इस तकनीकी युग में रेलवे का सिग्नल सिस्टम इतना खराब है कि वह एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन के बीच रेल मार्ग की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता तो इस तरह के हादसों को रोका जाना संभव नहीं है। मुश्किल यह है कि देश में इस तरह के रेल हादसों के इतिहास में एक के बाद एक नए पन्ने जुड़ते जा रहे हैं लेकिन न तो हादसों को रोक पाना संभव हो पा रहा है न ही इनसे होने वाली जनहानि को कम किया जा सका है। देश में हर साल औसतन एक बड़ा रेल हादसा होता है जिसमें सैकड़ों लोगों की जान चली जाती है लाखों करोड़ की संपत्ति का नुकसान होता है जून 1981 में बिहार में एक ट्रेन के पुल से नदी में गिरने से 750 से भी अधिक लोगों की मौत हो गई थी। साल 2012 में रिकॉर्ड 14 ट्रेन हादसे हुए। जिनमें बड़ी संख्या में लोगों की जानें गई। एक समय था जब देश के रेल मंत्रियों द्वारा नैतिकता का परिचय देते हुए किसी ट्रेन हादसे के बाद अपने पद से इस्तीफा देने का साहस दिखाया जाता था लेकिन अब ऐसा नहीं होता है और अगर होता भी है तो वह महज दिखावे के लिए होता है। लाल बहादुर शास्त्री देश के पहले ऐसे रेल मंत्री थे जिन्होंने न सिर्फ ट्रेन हादसे की जिम्मेवारी लेते हुए न सिर्फ रेल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने उनका इस्तीफा स्वीकार करते हुए कहा था कि यह नजीर बननी चाहिए। इसके बाद एनडीए सरकार में रेल मंत्री रहते सिर्फ नीतीश कुमार ही इस नजीर को कायम रख सके। हम हिंदुस्तानियों की रेल आज भी अंग्रेजों के जमाने में बिछाए गए लकड़ी के फट्टों पर ही दौड़ रही है खास बात यह है कि हम रेलवे व्यवस्था और ढांचे में वैसा सुधार नहीं कर सके जो होना चाहिए था भले ही हम चीन और रूस तथा अमेरिका की तरह हाई स्पीड और लग्जरी ट्रेन दौड़ाने की कोशिश कर रहे हो लेकिन हमारी ट्रेन की पटरियंा उसके काबिल नहीं है न हमारा सिस्टम अभी इतना डवलप हुआ है कि किसी दुर्घटना से पहले ही किसी ट्रेन को रोक सके। आइए दुर्घटना के शिकार हुए लोगों के प्रति संवेदनाए व्यक्त करके हम अपने कर्तव्य की इतिश्री करते हैं जैसा हमेशा करते रहे हैं।

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