कमजोर विपक्ष, भाजपा की ताकत

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भाजपा के विजय रथ को कोई एक राजनीतिक पार्टी रोक पाए इतनी कुव्वत अब किसी भी दल में नहीं रही है। इस सत्य को सभी विपक्षी दल बखूबी समझ चुके हैं। यही कारण है कि अब 2024 के आम चुनाव से पहले कैसे किसी तीसरे मोर्चे को अस्तित्व में लाया जाए इसके लिए जी तोड़ प्रयास किए जा रहे हैं। एक दशक तक केंद्रीय सत्ता में रहते हुए भाजपा ने अपने काम और रणनीति से देश की राजनीति पर इतनी मजबूत पकड़ बना ली है कि वह 2024 में जीत की हैट्रिक लगाने के करीब स्वयं को देख रही है। मजबूत इरादे और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ आगे बढ़ने वाली भाजपा व उसके नेता बखूबी इस बात को भी जानते हैं कि इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उसे कई दशकों तक संघर्ष करना पड़ा है। और अगर उनकी पकड़ जरा भी ढीली पड़ी और एक बार सत्ता की सीढ़ी से पैर फिसला तो दोबारा फिर सत्ता तक पहुंच पाना कितना मुश्किल है। यही कारण है कि भाजपा नेता अपनी पूरी जी जान से पूरी ताकत इस चुनाव में झोंकने को तत्पर हैं। कांग्रेस भले ही देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी और सबसे अधिक समय तक केंद्रीय सत्ता में रहने वाली पार्टी रही हो, लेकिन आज उसकी स्थिति इतनी कमजोर हो चुकी है कि इस विपक्षी एकता के प्रयासों में जुटे वह तमाम दल जिनका वजूद सिर्फ प्रांतीय स्तरों तक ही सीमित है वह भी कांग्रेस को अपनी भूमिका खुद तय करने की बात कह रहे हैं। तीसरे मोर्चे के संभावित नेताओं और दलों द्वारा कांग्रेस को न सिर्फ उसकी राजनीतिक औकात दिखाई जा रही है बल्कि नेतृत्व की जिद छोड़ने तक की नसीहतें दी जा रही है। एक अहम बात यह है कि यह नेता और दल इस बात को भी बखूबी जानते हैं कि बिना कांग्रेस के कोई भी तीसरा मोर्चा उस स्थिति में नहीं पहुंच सकता है कि वह भाजपा और नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर कर सके। कांग्रेस को जो आज एक मरा हुआ हाथी मान रहे हैं उन्हें इस बात को कतई भी नहीं भूलना चाहिए जिंदा हाथी लाख का होता है तो मरा हुआ हाथी सवा लाख का। अभी तीसरे मोर्चे की सिर्फ कोशिशें भर की जा रही हैं यह मोर्चा मूर्त रूप ले पाएगा या नहीं यह आने वाला समय ही बताएगा। लेकिन यह तय है कि बिना कांग्रेस के इसका कोई अस्तित्व और भविष्य नहीं हो सकता। जिन दलों के नेता भाजपा को सत्ता से बाहर करने और खुद को भावी पीएम होने का ख्वाब देख रहे हैं उन्हें सच को स्वीकार करना चाहिए। रही भाजपा की बात तो उसके नेताओं को यह भली—भांति ज्ञान है कि इस मोर्चे का गठन तो मुश्किल है ही और अगर गठन हो भी गया तो उसका अस्तित्व में बने रहना भी असंभव ही है क्योंकि सत्ता में भागीदारी और नेतृत्व की जटिल पहेली को सुलझा पाना उनके लिए कोई आसान काम नहीं होगा। भाजपा ने कांग्रेस को एक सोची—समझी रणनीति के तहत ही इस मुकाम पर पहुंचाया है कि वह अकेले या एक—दो सहयोगी दलों के साथ उसका मुकाबला न कर पाए। विपक्षी दल आज भाजपा सरकार के तानाशाह पूर्ण रवैए से आहत होकर एकजुटता के प्रयासों में जुटे हैं। विपक्षी दलों के नेताओं की नींद सीबीआई और ईडी के छापों ने भी उड़ा रखी है लेकिन इन नेताओं के अहम और राजनीतिक महत्वाकांक्षाए उनके रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा बनी हुई है। विपक्ष की यही कमजोरी अब भाजपा की सबसे बड़ी ताकत बन चुकी है।

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