अंकिता को न्याय की लड़ाई

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अंकिता भंडारी हत्याकांड को प्रकाश में आए 3 माह का समय बीत चुका है। लेकिन इस हत्याकांड को लेकर सुलग रही जनाक्रोश की आग अभी ठंडी नहीं पड़ी है। इस हत्याकांड ने पहाड़ के जनमानस और राजनीति को इस कदर झकझोर कर रख दिया है कि 3 माह बाद भी यह खबर अखबारों की सुर्खियां बनी हुई है तथा पूरे—पूरे पेज की कवरेज पा रही हैं। कल एसआईटी इस मामले की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर चुकी है। राजधानी की सड़कों पर अभी सर्द रातों में मशाल थामे महिलाएं न्याय की मांग को लेकर सड़कों पर है सोशल मीडिया से लेकर सड़कों और सदन तक इस मामले की गूंज है। तमाम राजनीतिक दल और नेता इस मुद्दे को लेकर आंदोलित हैं। पूर्व सीएम हरीश रावत ने एक बार फिर धरने पर बैठने का ऐलान कर दिया है। उनका कहना है कि उन्हें लग रहा है कि एसआईटी जांच में उस वीआईपी को बचाने के लिए साक्ष्यों व परिस्थितियों को बदलने की कोशिश की जा रही है जिसे स्पेशल सर्विस देने के लिए पहाड़ की बेटी पर दबाव बनाया जा रहा था हरीश रावत शुरू से ही उस वीआईपी के नाम के खुलासे की मांग करते रहे हैं जिसके साथ बाउंसर आते थे। खास बात यह है कि तीन महीनों की लंबी छानबीन और जांच—पड़ताल के बाद भी एसआईटी हत्या करने का पुख्ता कारण नहीं तलाश सकी है। उसकी चार्ज शीट में भी हत्या के कारण के सवाल पर उसकी सुई स्पेशल सर्विस के लिए दबाव पर आकर ही टिक चुकी है। अंकिता भंडारी के दोस्त पुष्प के साथ उसकी मोबाइल चैट जिसमें उसने रिजार्ट में गलत काम होने और खुद पर गलत काम करने के लिए दबाव बनाने की बात कही है को ही, हत्या का प्रमुख कारण माना गया है। पुलिस को रिजार्ट के एक अन्य कर्मचारी से चैट में अंकिता द्वारा यही सब बातें कही गई हैं। जो साक्ष्य के रूप में पुलिस के पास हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जहां अंकिता भंडारी काम करती थी वहां कुछ न कुछ तो गलत हो रहा था जिसकी जानकारी अंकिता को हो चुकी थी। आरोपियों को अंकिता से इस बात का भी खतरा था कि वह उनके काले कारनामों का भंडाफोड़ कर सकती है। खैर अभी इस मामले में एसआईटी द्वारा 500 पेज की चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है जिसमें 97 गवाहों के बयान दर्ज हैं। तथा जो धाराएं आरोपियों पर लगाई गई हैं वह उन्हें आजीवन कारावास से लेकर फांसी तक की सजा दिला सकती है अगर पुलिस आरोप सिद्ध कर पाई तो। उधर इस मामले की सीबीआई जांच की मांग पर भी हाईकोर्ट का फैसला आना बाकी है। लेकिन एक बात तय दिख रही है कि अंकिता को न्याय की लड़ाई एक दिन अंतिम पड़ाव तक जरूर पहुंचेगी भले ही इसमें कितना भी समय लग जाए। भले ही आरोपी कितने भी दबंग हो अथवा उनके राजनीतिक रसूख कितने भी मजबूत हो या फिर सत्ता पक्ष इस पर लीपा पोती का कोई भी प्रयास क्यों न कर रहा हो। आरोपियों का एक न एक दिन हिसाब जरूर होगा, क्योंकि कानून से ऊपर तो कोई भी नहीं है।

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