डिजिटल मुद्रा का युग

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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा देश में ई रूपी यानी डिजिटल करेंसी को लॉन्च कर दिया। आरबीआई द्वारा परीक्षण के तौर पर थोक खंड में पहले दिन 24 लेन देन किए गए जिसमें सभी 9 बैंकों ने भाग लिया तथा 275 अरब कीमत के सौदे किए गए। आरबीआई के अधिकारियों के अनुसार आगामी एक माह में खुदरा खंड में डिजिटल लेनदेन या ई रूपी का प्रयोग शुरू हो जाएगा। इस नई डिजिटल मुद्रा को समझने में अभी आम आदमी को थोड़ा समय लगेगा। असल में ई रूपी एक वाउचर है जिसे हस्तांतरण नहीं किया जा सकता है इसका इस्तेमाल वही कर सकता है जिसके लिए यह जारी होगा यह वाउचर क्यूआरकोड या एसएमएस कोड के रूप में होगा इसे स्कैन कर सत्यापन के लिए लाभार्थी के मोबाइल पर भेजा जाएगा और कोड नंबर के जरिए इसका भुगतान संभव होगा। इसका इस्तेमाल सिर्फ एक बार ही होगा तथा कैशलेस होगा और कॉन्टैक्टलेस होगा। यानी यह एक परोक्ष लेन देन है। इसमें न कोई मुद्रा प्रत्यक्ष होगी और न ही है लेन—देन करने वाले व्यक्ति या संस्थाएं। लेकिन यह बैंक लेनदेन की तुलना में ज्यादा रियलटाइम व कम लागत में होगा। इसकी प्रक्रिया प्रैक्टिस में आने से पहले किसी को भी थोड़ी जटिल लग सकती है। बैंकों के माध्यम से होने वाले डिजिटल लेनदेन की तरह ही। लेकिन बदलते समय की जरूरतों के अनुरूप ई रूपी को लाने का फैसला बहुत पहले किया जा चुका था। वित्त मंत्री सीतारमण ने अपने पिछले बजट में इसका जिक्र किया जा चुका है। दरअसल भारत के लोगों का बीते कुछ दिनों में जिस तरह से क्रिप्टोकरंसी की ओर रुझान बढ़ रहा है और इसको मान्यता देने की मांग की जा रही थी उसके मद्देनजर भारत सरकार ने यह महसूस किया था कि वह ऐसी कोई मुद्रा लेकर आए जो क्रिप्टोकरंसी का विकल्प बन सके। जिस क्रिप्टो करेंसी के बारे में पिछले कुछ सालों से सुना जा रहा है वह भी एक अप्रत्यक्ष मुद्रा है। देश के लोग अब तक सिर्फ प्रत्यक्ष करेंसी को ही जानते समझते हैं। जिसे वह रुपया, नोट या सिक्कों के रूप में इस्तेमाल करते आए हैं। लेकिन समय के साथ आए बदलाव ने लेनदेन के तरीके तो बदले ही है साथ ही मुद्रा का स्वरूप भी बदला है। दुनिया के 10 देशों द्वारा डिजिटल करेंसी को अपने यहां अपनाया जा चुका है। अब भारत भी इस लिस्ट में शुमार होने जा रहा है वहीं अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश अभी तक इसके बारे में शोध कर रहे हैं। भारत में भले ही इस करेंसी को लांच किया जा चुका है लेकिन अब सबकी निगाहें इसके फायदे और नुकसान पर लगी हुई है। यह भी माना जा रहा है कि जल्दबाजी में किया गया यह फैसला बैंकों के हित में नहीं है क्योंकि इससे उनके जमा राशि में कमी आने का खतरा पैदा हो सकता है। अब यह समय ही बताएगा कि यह प्रयोग कितना सफल या असफल रहता है।

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