पर्यटन विकास की उल्टी सोच

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उत्तराखंड को पर्यटन प्रदेश बनाने की कोशिशों के बीच सूबे के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज की यह सोच कि पर्यटन विभाग ऐसी व्यवस्था विकसित करें जिससे कोई भी व्यक्ति साल में सिर्फ एक बार ही चार धाम यात्रा पर आ सके इससे अधिक नही, क्यों यह पर्यटन को हतोत्साहित करने वाली बात नहीं है। एक तरफ सरकारी स्तर पर पर्यटकों को आकर्षित करने की कोशिशें की जाती हैं और यह प्रयास किए जाते हैं कि अधिक से अधिक चार धाम यात्री उत्तराखंड आए वहीं पर्यटन मंत्री यह प्रतिबंध लगाने की बात कर रहे हैं कि 1 बार से अधिक कोई चार धाम यात्रा पर न आए। दरअसल चालू चार धाम यात्रा सीजन में चारधाम यात्रियों की जो भारी भीड़ देखने को मिली है उससे पर्यटन मंत्री को ऐसा लग रहा है कि उन्होंने पर्यटन में झंडे गाड़ दिए लेकिन हकीकत यह है कि इस भीड़ के पीछे कोरोना काल में 2 साल यात्रा का बाधित रहना है। जो लोग 2 साल से चार धाम यात्रा पर आने का मन बनाए बैठे थे उन्हें मौका मिला तो वह चार धाम यात्रा के लिए निकल पड़े। यही कारण है कि इस साल अब तक सबसे अधिक संख्या में 43 लाख श्रद्धालु चार धाम यात्रा पर आ चुके हैं और अभी शेष बचे समय में 2 लाख और भी आ सकते हैं तथा यह संख्या 45 लाख तक पहुंच सकती है। लेकिन इस संख्या पर पर्यटन मंत्री को इतना खुश होने की जरूरत नहीं है कि यात्रियों पर पाबंदी लगाने की बात सोचने लगे। 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद जैसे—तैसे तो इस साल चार धाम यात्रा पटरी पर आई है। पर्यटन मंत्री को अगर किसी मुद्दे पर सोचने की जरूरत है तो वह है चार धाम यात्रा की सुरक्षा व्यवस्था पर। पर्यटन मंत्री को इस बात पर विचार करना चाहिए कि इस साल चार धाम यात्रा के दौरान सबसे अधिक यात्रियों की मौतें हुई है और इसका कारण रहा है यात्रा व्यवस्थाओं की खामियां। लोगों को बीमार होने पर उचित इलाज न मिल पाना। धामों में उनके ठहरने की खाने पीने की उचित व्यवस्था न होना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस यात्रा के दौरान खुद केदार धाम यात्रा मार्ग पर फैली गंदगी पर संज्ञान लेते हुए यात्रियों से सफाई व्यवस्था में सहयोग की अपील की थी। यात्रा के दौरान यात्रियों की समस्याओं को लेकर इस साल रिकॉर्ड समाचार व शिकायतें आई इस पर पर्यटन मंत्री का कोई ध्यान नहीं है उन्हें सिर्फ 45 लाख की संख्या दिख रही है और रिकॉर्ड बुक दिख रही है। बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम में अगर केंद्र सरकार द्वारा पुनर्निर्माण के काम न कराए गए होते तो आज इन धामों की स्थिति क्या होती? यह भी पर्यटन मंत्री के लिए एक विचारणीय सवाल है। बीते दो दशकों में अगर सूबे की सरकारों ने राज्य के पर्यटन के विकास पर फोकस किया गया होता तो आज स्थिति कुछ और ही होती मगर अभी भी इसे लेकर सिर्फ बातें ज्यादा की जा रही है और काम कम हो रहा है।

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