सूूबे के शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल को अब तक लोग सिर्फ एक नेता की हैसियत से जानते होंगे वह एक अच्छे कवि और साहित्यकार भी हैं इसकी जानकारी शायद कम ही लोगों को होगी। कल पहली बार लोगों ने उन्हें शायराना अंदाज में देखा तो सभी हैरान रह गए। कार्यक्रम भले ही किफायती आवास पर आयोजित कार्यशाला था लेकिन मंच से जब उन्होंने मैं दीपक हूं मेरी दुश्मनी सिर्फ अंधेरे से है हवा तो बेवजह मेरे खिलाफ है, हवा से कह दो कि खुद को आजमा के दिखाए बहुत दीपक बुझा दिये है एक जला कर भी दिखाएं, पढ़ा तो खूब तालियां बटोरी। कवि या शायर होना कोई बुराई नहीं है और फिर किसी नेता का शायर कवि अथवा साहित्यकार होना तो उसकी बहु आयामी प्रतिभा का ही प्रतीक है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई को आज भी लोग एक कवि के रूप में सम्मान सहित याद करते हैं। हमने तो उन्हें संसद में अपनी बात काव्यात्मक भाषा और श्ौली में करते देखा है। अटल जी अपनी कालजई रचनाओं और बेदाग व्यक्तित्व से काल के कपाट पर अमिट हस्ताक्षर करके चले गए। लेकिन उनके बाद भी उनके भाव और भावनाओं का दीपक प्रकाशमान है। दीपक बनकर जलना और अंधकार को मिटाना तथा दूसरों को राह दिखाने की बातें करना जितना आसान काम है उतना ही कठिन काम है दीपक बनकर जलना। प्रेमचंद्र अग्रवाल द्वारा स्वयं को दीपक बताना और चुनौतियां देना दीपक का गुण नहीं है। जिन हवाओं को वह बेवजह अपने खिलाफ होने की बात कह रहे हैं वह बेवजह नहीं हो सकती है। उन्हें भी यह समझने की जरूरत है कि जहां हवा न हो वहां दीपक नहीं जलता जनाब, जहां आग न हो वहां धुआं नहीं उठता। क्यों चुनौतिया दे रहे हो हवाओं को हवा खिलाफ हो तो कोई नेता नहीं बनता जनाब। विधानसभा में हुई बैक डोर भर्तियों के आरोपों से घिरे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और आज के शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद्र अग्रवाल के सामने अब अगर सबसे बड़ी चुनौती है तो वह यही है कि वह अपने आप को बेदाग कैसे साबित कर पाएंगे? उनके राजनीतिक भविष्य को उस एक्सपर्ट समिति की रिपोर्ट तय करेगी जो कुछ ही दिनों में आने वाली है। अब तक जो भी तथ्य सामने आए हैं वह उनके खिलाफ ही दिखाई देते हैं। अपने इंजीनियर पुत्र को गलत तरीके से नौकरी दिलाने को लेकर भी वह चर्चाओं के केंद्र में रह चुके हैं। उनके दीपक होने और अंधेरों से दुश्मनी होने की बात को वही बेहतर तरीके से जान समझ सकते हैं कि वह कैसे दीपक है और कौन से अंंिधयारो को उन्होंने अब तक मिटाया है। शब्दों का भ्रम जाल और नए नए नारे गढ़ने से कुछ नहीं होता है अपने कार्य व्यवहार में कथनी और करनी के फर्क को मिटाना पड़ता है और जो नहीं मिट पाते वह एक दिन खुद ब खुद मिट जाते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र में कोई व्यक्ति जनता से अपना सच छुपा कर नहीं रख सकता है।