जनतंत्र की संपूर्ण शक्ति जनता में निहित है। शासन—प्रशासन सिर्फ जनतंत्र के संचालन के टूल भर है, लेकिन यह विडंबना ही है कि नेताओं और ब्यूरोक्रेट्स ने इस देश की जनता को दीन—हीनता की खाई से कभी बाहर नहीं आने दिया और न उसे अपनी एकता की ताकत की अहमियत को समझने दिया। नेताओं ने जनता को धर्म जाति और क्षेत्रवाद में विभक्त करके रखा वही नेता के साथ अधिकारी भी स्वयं को सेवक की बजाय शासक की मानते रहे और कानून का भय दिखाकर उन्हें डराते व लूटते रहे हैं। आज देश अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है लेकिन इस देश का आदमी इन आजादी के 75 सालों में क्या अपनी रोटी, कपड़ा और मकान की समस्याओं से आजाद हो सका है। देश के आम आदमी की स्थिति आजादी के 75 साल बाद भी उस सेना जैसी ही है जो भूखे पेट जंग लड़ रही होती है। देश के नेता और ब्यूरोक्रेट्स के अलावा चंद औघोगिक घरानों को छोड़ दिया जाए तो बाकी जनता अपनी मूल जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकारों की मेहरबानियों पर जिंदा है। अभी बीते दिनों कोरोना काल की एक तस्वीर देश और दुनिया ने देखी थी। भारत के बारे में बड़ी—बड़ी बातें हम नेताओं से सुनते आ रहे हैं एक भारत, श्रेष्ठ भारत और आत्मनिर्भर भारत जैसी शगूफेबाजी करने वाले नेता ही बड़े गर्व से यह बताते हैं कि उन्होंने महामारी काल में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराया या उन्हें मुफ्त के टीके लगवाए। सवाल यह है कि इसकी जरूरत क्यों पड़ी? आजादी के 75 साल बाद भी देश की जनता इतनी आर्थिक रूप से संपन्न क्यों नहीं बन सकी। वह हजार—दो हजार के टीके खुद लगवा पाती, अपनी जान की सुरक्षा पर जो जनता हजार—दो हजार भी खर्च करने की स्थिति में न हो या फिर उसे सरकार से मुफ्त राशन न मिलता तो वह भूखी मर जाती। उस देश की आत्मनिर्भरता के नारे लगाए जाने का क्या मतलब रह जाता है। नेताओं ने इन 75 सालों में या तो गरीबी मिटाओ कांग्रेस लाओ और अच्छे दिन आने वाले हैं हम मोदी जी को लाने वाले हैं जैसे नारे दिए या फिर हिंदू—मुस्लिम और अगड़े—पिछड़ों तथा मंदिर—मस्जिद जैसे जनता को लड़ाने और सामाजिक विभाजन का काम किया है। देश और देश की आम जनता के लिए सही मायने में कुछ भी नहीं किया है। देश में भ्रष्टाचार की जो समस्या सबसे बड़ी समस्या है उसकी जड़ की तलाश के मुद्दे पर अनेक बार राष्ट्रीय बहस हो चुकी है। राजनीति व प्रशासन से भ्रष्टाचार को अगर इन 75 सालों में मिटा दिया गया होता तो आज इस देश की जनता के सामने शायद कोई भी समस्या नहीं होती। सब संपन्न होते सब शिक्षित होते और वह रामराज्य स्वतः ही आ जाता। देश के नेताओं को इसके लिए कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ती। बड़ा सवाल यह है कि आखिर इस देश की जनता को अपनी शक्ति का ज्ञान व आभास कब होगा?