धामी के गले की फांस बना त्रिवेंद्र का देवस्थानम बोर्ड

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कांग्रेस की सरकार करेगी रद्दः हरीश
सरकार कर रही है गुमराहः कोठियाल
सब की राय से होगा फैसलाः धामी

देहरादून। जैसे—जैसे चुनाव का समय नजदीक आ रहा है देवस्थानम बोर्ड के गठन पर सियासत गर्माती जा रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और भाजपा के लिए त्रिवेंद्र सरकार का यह फैसला गले की फांस बन चुका है। जिसका कोई ऐसा समाधान उन्हें नजर नहीं आ रहा है जो इसका पटाक्षेप कर सके और उससे सभी संतुष्ट भी हो सके।
त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा सूबे के सभी चारों धामों सहित 51 मंदिरों के लिए बनाए गए देवस्थानम बोर्ड का पहले ही दिन से तीर्थ पुरोहितों और हक हकूक धारियों द्वारा विरोध किया जा रहा है लेकिन एक्ट बन चुके इस फैसले को कैसे पलटा जाए यह सरकार के लिए आसान काम नहीं है। अगर सरकार इसे वापस लेती है तो यह थूक कर चाटने वाला काम होगा और अगर इसे वापस नहीं लिया जाता है तो तीर्थ पुरोहित, पुजारी पंडा तथा हक हकूक धारी जो इसे लेकर लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं उनकी नाराजगी का सामना करना भी तय है जिसका चुनाव पर सीधा प्रभाव पड़ेगा।
भाजपा और धामी सरकार की इसी मजबूरी के मद्देनजर अब विपक्ष ने इस मुद्दे को धार देना शुरू कर दिया है। पूर्व सीएम हरीश रावत न सिर्फ तीर्थ पुरोहितों से संपर्क साधे हुए हैं बल्कि उन्हे कई बार यह भरोसा दिला चुके हैं कि काग्रेस की सरकार बनी तो वह देवस्थानम बोर्ड को रद्द कर देंगे। वह सरकार पर भी इस बात का दबाव बना रहे हैं कि सरकार इस पर जल्द फैसला क्यों नहीं कर रही है।
उधर विधानसभा चुनाव में पूरे दमखम के साथ उतरने वाली आम आदमी पार्टी के सीएम उम्मीदवार कर्नल कोठियाल का भी यही कहना है कि वह सत्ता में आए तो देवस्थानम बोर्ड को रद्द कर देंगे। कोठियाल कहते हैं कि धामी सरकार इस मामले को लटका कर रखना चाहती है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस मामले की संवेदनशीलता को जानते हैं यही कारण है कि वह हमेशा इस मुद्दे पर सर्वसम्मति से समाधान की बात कहते रहे हैं उन्होंने थोड़ा समय टालने के लिए इस पर मनोहर कांत ध्यानी की अध्यक्षता में कमेटी का गठन कर दिया था जो अब उन्हें अपनी रिपोर्ट सौंप चुका है। गेंद अब धामी सरकार के पाले में हैं लेकिन वह अभी भी रिपोर्ट का अध्ययन कर सब की राय से समाधान की बात तो कर रहे हैं लेकिन समाधान कब होगा इसका कोई जवाब नहीं दे पा रहे हैं। देखना होगा कि क्या वह आचार संहिता लागू होने तक इसे यूं ही लटकाए रखते हैं या फिर कोई फैसला लेते भी हैं। लेकिन इस पर कोई भी फैसला उनके लिए आसान नहीं होगा।

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