दल बदल व सेंधमारी शुरू

0
950

उत्तराखंड विधानसभा का आगामी 2022 का चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों में से किसी के लिए भी आसान रहने वाला नहीं है। इस चुनाव के समीकरण आम आदमी पार्टी के चुनाव मैदान में कूदने से तो बदल ही गए हैं इसके साथ—साथ कांग्रेस, जिसने 2017 के विधानसभा चुनाव में करारी हार का सामना किया था आगामी चुनाव को लेकर अत्यंत ही सजग और सतर्क है। क्योंकि यह चुनाव कांग्रेस के लिए करो या मरो वाला है। अगर इस चुनाव में कांग्रेस की फिर हार होती है तो राज्य में उसका भविष्य बड़े खतरे में पड़ जाएगा। अभी नहीं तो कभी नहीं की स्थिति को कांग्रेसी नेता अच्छी तरह जान समझ रहे हैं। राज्य के चुनावी समीकरण अब एक बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा वाले नहीं रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जोकि 2022 के इस चुनाव की कमान संभाले हुए हैं। उन्हें यह पता है कि हार का मतलब उनके राजनीतिक जीवन का अवसान होना होगा। इसलिए वह अपना संपूर्ण ज्ञान, अनुभव और ताकत इसमें लगाने में कमी नहीं नहीं रखेंगे। अपने शासनकाल में कांग्रेस में हुए बड़े विभाजन से टूट चुकी कांग्रेस को कैसे संजीवनी मिले इसका उन्होंने काम शुरू कर दिया है। भाजपा के नेता और कार्यकर्ताओं को अपने पाले में लाने में जुट गए हैं। बीते रविवार को विहिप के पूर्व महामंत्री महेंद्र सिंह नेगी के बाद कल हरिद्वार खानपुर के पूर्व ब्लाक अध्यक्ष विनोद चौधरी तथा ओबीसी मोर्चा जिला उपाध्यक्ष मनीष कुमार को वहां समर्थकों के साथ कांग्रेस से जुड़ चुके हैं। यही नहीं 2017 में चुनाव लड़ने वाले उन निर्दलीय प्रत्याशियों पर उनकी नजर है जो चुनाव जीते थे या जीत के आसपास रह गए थे। इन में राम सिंह कैड़ा व प्रीतम सिंह पंवार विजयी रहे थे तथा किशन भंडारी 15 हाजर और दिनेश धनै 14 हजार वोट लेने के बाद भी चुनाव हार गए थे। दुर्गेश लाल व कुलदीप ने भी 13—13 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे। चुनाव में जिताऊ उम्मीदवारों की सभी दलों को तलाश होती है। कांग्रेस ही नहीं अब भाजपा भी ऐसे नेताओं के लिए बाहें पसारे बैठी है। जिन्हें अगर पार्टी कैडर का 10—20 फीसदी वोट भी मिल जाएं तो उनकी जीत पक्की हो सकती है। भाजपा और कांग्रेस ही नहीं आप ने भी अब इन जिताऊ प्रत्याशियों पर नजर गड़ा रखी है। यूं तो हर चुनाव में अब सरकार की परछाई अपना काम करती है। वह नेता हो या फिर दल सभी अपने लिए ठोस जमीन तलाशना शुरू कर देते हैं। खेल अब उत्तराखंड में भी शुरू हो चुका है। नेताओं व कार्यकर्ताओं का इधर से उधर होना जारी है। इस नीति से सिर्फ खुद की मजबूती ही हासिल नहीं की जाती बल्कि विरोधियों को कमजोर करने में भी इसकी भूमिका रहती है। इस दलबदल व सेंधमारी में कौन सा दल या पार्टी कितने नुकसान और फायदे में रहता है यह चुनाव के बाद ही पता चल सकेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here