बूस्टर डोज से क्या होगा?

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जिस तरह से कोरोना के नए—नए वैरीयंट सामने आ रहे हैं उससे एक बात साफ है कि कोरोना से सहज मुक्ति मिलना संभव नहीं है। ओमीक्रोन वैरीयंट ने अब विश्व के 100 से भी अधिक देशों में अपने पैर पसार लिए हैं। फ्रांस, इटली, तथा ब्रिटेन भले ही अभी सर्वाधिक प्रभावित देश हों लेकिन इसे लेकर अब पूरा विश्व चिंतित है। बात अगर हिंदुस्तान की करें तो यहां अब ओमीक्रोन के 500 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं तथा 19 राज्यों तक यह नया वेरियंट पहुंच चुका है। कोरोना को लेकर अब तक जितने भी टीकों की खोज हुई है उनमें से कोई भी टीका इस बात की गारंटी नहीं देता है कि टीकाकरण के बाद उस व्यक्ति को कोरोना नहीं होगा। जिन लोगों को कोरोना हो रहा है उनमें 50 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्हें टीके की दोनों डोज दी जा चुकी है। डॉक्टरों का कहना है कि टीके का प्रभाव अधिकतम 9—10 महीने तक ही रहता है। बीते कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रंटलाइन वर्कर और बुजुर्गों को बूस्टर डोज दिए जाने का ऐलान किया है। वहीं 15 से 18 साल के बच्चों को भी टीका लगाने का ऐलान कर दिया गया है। ऐसे हालात में यह सवाल स्वाभाविक है कि आखिर कोरोना से बचने के लिए कब तक टीके और बूस्टर डोज का सहारा लिया जाता रहेगा। जिस व्ौक्सीनेशन को इसका इलाज समझा जा रहा था वह वास्तव में इसका कोई इलाज नहीं है। बल्कि सिर्फ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की दवा भर है जो कि कोरोना वायरस से जान जाने की संभावनाओं को कम कर सकता है। ओमीक्रोन को लेकर यह कहा जा रहा है कि यह डेल्टा से पांच गुना ज्यादा तेजी से फैलता है लेकिन इसमें मृत्यु दर डेल्टा से आधी ही रहती है अगर यह सच भी है तो भारत में इसका गंभीर प्रभाव इसलिए हो सकता है क्योंकि देश में आबादी का घनत्व बहुत ज्यादा है। डेल्टा की दूसरी लहर में जितने लोग कोरोना की चपेट में आए थे अगर उससे पांच गुना ज्यादा लोग ओमीक्रोन की चपेट में आते हैं तो भी इससे दूसरी लहर से ज्यादा लोगों की जान जा सकती है। केंद्र और राज्य सरकारें अब ऐसी पाबंदियां कतई भी लगाने के पक्ष में नहीं है जिससे कि अर्थव्यवस्था का पहिया लाकडाउन की तरह थम जाए। अतः वैक्सीनेशन और बूस्टर डोज के सहारे जान बचाने की कोशिशें ही एकमात्र जरिया बचता है। जहां तक इस महामारी से स्थाई निजात मिलने का सवाल है इसका जवाब किसी के पास नहीं है। देश में अब कोरोना की गाइडलाइन और उनके अनुपालन का जहां तक सवाल है वह अब महज औपचारिकता भर रह गया है। देखना है कि कोरोना की तीसरी लहर का प्रभाव कितना रहता है।

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