कोयला उत्पादन की कमी के कारण देश की राजधानी सहित सभी राज्यों में बिजली का अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया है। राष्ट्रीय स्तर पर बीते तीन दिनों में बिजली के दामों में तीन गुना वृद्धि कर दी गई है। उत्तराखंड सहित अनेक राज्य ऐसे हैं जिन्होंने इतनी ऊंची दरों पर बिजली खरीदने से हाथ खड़े कर दिए। बीते चार दिनों में नेशनल एक्सचेंज से बिजली की दरों में 5 से 5.50 रुपए तक की वृद्धि की गई है जिससे प्रति यूनिट बिजली के दाम 15 रूपये तक पहुंच गए हैं। सवाल सभी राज्यों के सामने है कि इतनी महंगी बिजली लेकर उपभोक्ताओं तक कैसे पहुंचाई जाए। वैसे भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सहित पांच राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। कोरोना के कारण वैसे ही महंगाई अपने स्तर पर पहुंच चुकी है और लोग पेट्रोल डीजल तथा रसोई गैस की कीमतों को लेकर आक्रोशित है। साथ ही तेल और अन्य उपभोत्तQा वस्तुओं की कीमतें सातवें आसमान पर आने पर अब अगर बिजली की आपूर्ति भी ठप हो जाती है या फिर उसके दामों में भारी वृद्धि हो जाती है तो हाहाकार मचना स्वाभाविक है। आज इसे लेकर उत्तर प्रदेश के सीएम योगी भी हाई लेवल बैठक कर रहे हैं। भले ही उत्तराखंड के ऊर्जा मंत्री डॉ हरक सिंह यह दावा कर रहे हो कि बिजली की किल्लत नहीं होने दी जाएगी लेकिन यह सच नहीं है। क्योंकि यह संकट राष्ट्रव्यापी है। दरअसल कोरोना के कारण कोयला खदानों में काम न हो पाने और कोयला खदानों की मानसून काल में सुरक्षा व्यवस्था न किए जाने के कारण कोयला खदानों में पानी भर गया है जिसके कारण खदान का काम नहीं हो पा रहा है अब तक कोयला उत्पादन की कमी के कारण उत्तर प्रदेश सहित पूरे देश में बड़ी संख्या में बिजली उत्पादन संयंत्रों में काम बंद हो चुका है। जब बिजली का उत्पादन नहीं होगा तो बिजली आएगी कहां से। देश की राजधानी दिल्ली से लेकर दून तक इस अभूतपूर्व बिजली संकट को लेकर हाहाकार मचा हुआ है। अब कोयले का उत्पादन जो रातों—रात नहीं बढ़ाया जा सकता है या फिर कोयला आयात करना भी आसान नहीं है क्योंकि कोयले का आयात बहुत महंगा पड़ेगा। ऐसे भी इस समस्या का निवारण बहुत आसान नहीं है। यूपीसीएल ने राष्ट्रीय स्तर पर महंगी की गई बिजली के कारण बिजली खरीद पर रोक लगा दी है इसलिए उत्तराखंड में आज से बिजली का गंभीर संकट पैदा हो सकता है। तथा बिजली कटौती की जा सकती है। त्यौहारी सीजन में सरकारें इस समस्या से कैसे निपटती है यह समय ही बताएगा। इसे आप भले ही कोरोना काल का साइड इफेक्ट भी कह सकते हैं लेकिन यह सत्ता की एक बड़ी विफलता भी कही जा सकती है। पांच राज्यों की चुनावी तैयारियों में जुटे नेता और राजनीतिक दल मुफ्त बिजली देने का वायदा कर रहे हैं ऐसे में अगर बिजली की भारी कटौती होती है या बहुत महंगी दर पर बिजली मिलती है तो इसका चुनाव पर प्रभाव पड़ना तय है। लोगों की परेशानी से भी ज्यादा नेताओं को अब यह सवाल अधिक परेशान कर रहे हैं।