यह अत्यंत ही खेदजनक है कि अलग राज्य बनने के 23 सालों में भी सूबे की सरकारों द्वारा चार धाम यात्रा को सुचारू ढंग से संचालित करने और उसे सुगम और सुखद बनाने के लिए कोई ऐसा सिस्टम विकसित नहीं किया जा सका जो आमतौर पर देश के अन्य तमाम धार्मिक यात्राओं में देखा जा सकता है। वही बद्री केदार समिति और पंडा पुजारी इस देश की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा का संचालन और व्यवस्थाओं को अपनी सुविधानुसार चला रहे हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी चारधाम यात्रा की ब्रांडिंग की बात कर जरूर रहे हैं लेकिन यह ब्रांडिंग क्या और कैसी होगी समय ही बताएगा। जिस तरह से साल दर साल चारधाम यात्रियों की संख्या में इजाफा हो रहा है वह यह बताने के लिए काफी है कि उत्तराखंड राज्य में अगर इस यात्रा को सुचारु प्रबन्ध सुनिश्चित करने के लिए कोई प्रभावी व स्थाई व्यवस्था हो जाए तो इस राज्य के आम आदमी और सरकार की तमाम आर्थिक समस्याओं का समाधान अकेले चार धाम यात्रा से ही हो सकता है। अगर केंद्र सरकार द्वारा जो आलवेदर चारधाम रोड जैसी परियोजना न लाई गई होती तो आज भी इस यात्रा को हम 50 साल पहले वाले प्रारूप में ही देख रहे होते। राज्य गठन के बाद इस राज्य को पर्यटन राज्य बनाने तथा ऊर्जा प्रदेश बनाने या योग व अध्यात्म की राजधानी के रूप में विकसित करने पर लंबी चर्चाएं होती रही है। लेकिन अब तक यह स्पष्ट हो चुका है कि देवभूमि उत्तराखंड के लिए अगर सबसे मुफीद कुछ हो सकता है तो वह धार्मिक पर्यटन ही हो सकता है। जिसके साथ आप योग और अध्यात्म को जोड़कर आगे तक जा सकते हैं। लेकिन इसके लिए राज्य सरकार को एक व्यवस्था को विकसित करना ही होगा सिर्फ केंद्र सरकार के भरोसे, कि वह मानस खंड मंदिर परियोजना लायेगी और राज्य के सभी पुराने जीर्ण शीर्ण मठ—मंदिरों का जीणोद्धार करेगी और बद्री केदार के तर्ज पर पुनर्निर्माण कार्य करवायेगी या मास्टर प्लान लायेगी, राज्य सरकार को अपने स्तर पर बहुत कुछ करना पड़ेगा। सिर्फ यह देखकर कि बीते साल चारधाम यात्रा पर 25 लाख लोग आए थे और इस साल पहले ही माह में 13 लाख से अधिक रिकार्ड श्रद्धालु पहुंच चुके हैं, आप संतुष्ट नहीं हो सकते हैं। जो श्रद्धालु यात्रा पर आ रहे हैं उन्हें क्या—क्या और किस—किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है इस पर भी गौर करने की जरूरत है। पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा माता वैष्णो देवी की तर्ज पर चारधाम यात्रा की व्यवस्थाओं में सुधार के लिए श्राइन बोर्ड की तरह देवस्थानम बोर्ड बनाने का प्रस्ताव लाया गया था। जिसे आज तक अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। क्योंकि इसके विरोध में बद्री केदार समिति से लेकर तीर्थ पुरोहित और पंडा पुजारी खड़े हो गए थे। यह बड़ी विडंबना है कि चार धाम यात्रा से लाखों करोड़ों की कमाई करने वाले किसी भी सूरत में व्यवस्थाओं में रत्ती भर भी परिवर्तन बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। यात्रियों को जीरो डिग्री में रात बितानी पड़े तो पड़े, उन्हें खाने—पीने की वस्तुएं 9 की 100 में मिले तो मिले। वह चार—चार घंटे जाम में फंसे रहे तो फंसे रहे। जिस तरह की अव्यवस्थाएं हर साल लाखों श्रद्धालु झेलते हैं वह कदाचित भी इस बड़ी धार्मिक यात्रा के लिहाज से ठीक नहीं हैै। सीएम धामी को चाहिए कि वह इन व्यवस्थाओं में बदलाव के लिए कोई बड़ा और साहसिक कदम उठाए सिर्फ ब्रांडिंग से कुछ नहीं होगा।