देहरादून। कोरोना काल में कामकाज ठप रहने से सरकार को भारी राजस्व की हानि हुई यह तो अलग बात है लेकिन आबकारी जैसे कुछ महत्वपूर्ण कमाई वाले विभागों में बैठे लापरवाह अधिकारियों की कारगुजारी के कारण यह नुकसान कई गुना अधिक हुआ है।
मार्च 20—21 के दौरान कोरोना काल में हुए लाकडाउन में सूबे की सभी शराब की दुकानों को बंद कर दिया गया था। शराब के फुटकर विक्रेताओं को कोई नुकसान न हो इसके लिए व्यवस्था की गई थी कि 10 दिन के माल के बराबर रेवेन्यू इन्हें क्षतिपूर्ति के रूप में दिया जाएगा या इनसे सभी पुराना स्टाक वापस लिया जाएगा। सरकार द्वारा इसकी क्षतिपूर्ति के रूप में 15470 करोड़ का आकलन किया गया था। लेकिन पता चला कि अनुज्ञापियों को आंकलन से भी चार साढ़े चार करोड़ अधिक ज्यादा पैसा लौटा दिया गया। यही नहीं जिन ठेकेदारों ने माल नहीं वापस किया था उन्हें नए वित्तीय वर्ष में माल को बेचने की अनुमति दे दी गई। जिससे सरकार को गहरा नुकसान हुआ। क्योंकि ठेकेदारों के पास शराब ड्यूटी पे करने के बाद ही बिक्री के लिए आती है। लेकिन इस पुराने बचे माल को यूं ही ठेकेदारों द्वारा खपा दिया गया। यह सारा खेल आबकारी विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से ही हुआ।
अब आबकारी कमिश्नर द्वारा इस बड़ी धांधली की जांच के आदेश दिए गए हैं। सवाल यह है कि अब इस जांच से होना भी क्या है। भले ही जिन ठेकेदारों के पास अतिरिक्त सरकारी धन पहुंचा है उनका पता भी चल जाए लेकिन उनसे वसूली होना संभव नहीं दिखता है क्योंकि नए वित्तीय वर्ष में अब अधिकांश ठेकेदार कारोबार छोड़कर बाहर निकल गए है या उन्हें नई नीलामी में दुकानें आवंटित नहीं हो सकी है।
इस मामले की गूंज विधानसभा सत्र में भी सुनाई दे सकती है क्योंकि नेता विपक्ष प्रीतम सिंह के निजी सचिव ने एक पत्र लिखकर आबकारी सचिव से इस प्रकरण के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी गयी है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आबकारी विभाग के कुछ अधिकारी जो सीधे—सीधे इस धांधली से जुड़े है मामले की लीपापोती करने में जुटे हुए है।