मलिन बस्ती वासियों को फिर अभय दान

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उत्तराखंड की मलिन बस्तियों पर 2024 तक बुलडोजर नहीं चलाया जाएगा इसकी अब सूबे की धामी सरकार ने पक्की व्यवस्था कर दी है। बीते कल कैबिनेट की बैठक में नगर निकाय प्राधिकरणो के विशेष प्राविधान अधिनियम 2018 की धारा 4 में संशोधन करते हुए इसकी समय सीमा 3 वर्ष से बढ़ाकर 6 वर्ष कर दी गई है। यहां यह उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व सरकार अपने इसी अधिकार का उपयोग कर नगर निगम व नगर निकाय क्षेत्रों में बसी अवैध मलिन बस्तियों को ध्वस्तिकरण की कार्रवाई से बचा चुकी है। 2018 में हाईकोर्ट की सख्ती के कारण एक बार ऐसी स्थिति पैदा हो गई थी कि लगा अब जैसे इन बस्तियों पर बुलडोजर चलकर ही रहेगा। तब तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने हाईकोर्ट को भरोसा दिलाया गया था कि 3 साल में उनके पुनर्वास की व्यवस्था कर देंगे और सरकार ने अपने इसी संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए इन बस्तियों को उजड़ने से बचा लिया था। लेकिन 3 साल बाद भी सरकार इस दिशा में एक भी कदम आगे नहीं बढ़ सकी अक्टूबर माह में इसकी समयावधि समाप्त होती इससे पूर्व अब फिर सरकार ने इसकी अवधि 3 साल आगे बढ़ा दी है। बात स्पष्ट है कि इन 3 सालों में उत्तराखंड विधानसभा के चुनाव भी निपट जाएंगे और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव भी। इसलिए इसमें कोई संशय की बात नहीं है कि सरकार ने गरीब मजदूरों के हितों से जुड़े इस मुद्दे को अगले 3 साल के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। सरकार के इस फैसले से कुछ लोग जो इन अवैध और मलिन बस्तियों में रहते हैं खुश हो सकते हैं। लेकिन उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि भविष्य को लेकर जो अनिश्चितता की तलवार उनकी गर्दन पर लटकी थी वह लटकी ही रहेगी। सरकार ने 3 साल का अभयदान देकर सिर्फ अपना चुनावी हित साधा गया है। विपक्ष को चुनावी मुद्दे के तौर पर इसे इस्तेमाल से रोका गया है और मलिन बस्तियों में रहने वालों के विरोध के स्वरों को दबाने का प्रयास किया गया। मलिन बस्तियंा जिनकी संख्या 600 के आस—पास है तथा जिनमें 12 लाख के आस—पास लोग रहते हैं उनकी इस समस्या का स्थाई समाधान कब और कैसे होगा? हर बार चुनाव में इन बस्तियों के नियमितीकरण को चुनावी मुद्दा बनाया जाता है लेकिन इसका समाधान किसी भी दल द्वारा क्यों नहीं किया जाता है? सरकार इनके विस्थापन का काम नहीं कर सकती है क्योंकि इतनी बड़ी आबादी को घर मुहैया कराना आसान नहीं है लेकिन इनके नियमितीकरण का काम तो किया ही जा सकता है जिससे इन मलिन बस्तियों में रहने वालों को मालिकाना हक और सरकारी सुविधाएं मिल सकें। सरकार को भी इससे टैक्स का फायदा होगा लेकिन इनके वोट से उनकी पकड़ ढीली जरूर पड़ जाएगी। बस यही बात इस समस्या के समाधान की सबसे बड़ी बाधा है।

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