अफगानी कैडेट्स का भविष्य भी अधर में
देहरादून। अफगानिस्तान में हुए तख्तापलट के बाद राजधानी काबुल सहित पूरे अफगानिस्तान पर तालिबान ने कब्जा कर लिया है। राष्ट्रपति भवन से लेकर तमाम सरकारी कार्यालयों पर तालिबान का कब्जा हो चुका है तथा सेना सरेंडर कर चुकी है और नेता देश छोड़कर भाग खड़े हुए हैं ऐसे में यह सवाल उठता है कि जो अफगानी कैडेट देहरादून आईएमए में प्रशिक्षण ले रहे हैं वह दिसंबर में होने वाली पासिंग परेड के बाद अब तालिबानी सेना का हिस्सा बनेंगे?
यह सवाल सिर्फ उन अफगानी कैडेटस के भविष्य से ही नहीं जुड़ा है बल्कि हिंदुस्तान की सुरक्षा और विदेश डिप्लोमेसी के लिहाज से भी अहम है। आखिर वह अफगानी कैडेट्स जिनकी संख्या 40 के आसपास बताई जाती है उनके भविष्य का अब क्या होगा? वह कहां जाएंगे? यह एक अहम सवाल है। जब वह आईएमए में ट्रेनिंग के लिए आए थे उस समय अफगानिस्तान में एक लोकतांत्रिक सरकार थी जिसका नेतृत्व राष्ट्रपति अशरफ गनी कर रहे थे। यही नहीं उस समय भारत और अफगानिस्तान के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों का ताना—बाना बुना जा रहा था जिसकी बुनियाद पर इन अफगानी कैडेट्स को आईएमए में प्रशिक्षण का अवसर मिल सका था। लेकिन अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद हालात एकदम पलट चुके हैं।
भले ही तालिबानी नेताओं द्वारा वहां की आम जनता और भारत जैसे मुल्कों के बारे में कुछ भी कहा जा रहा हो लेकिन उनके 20 साल के इतिहास को देखते हुए कोई मुल्क उनकी बात पर भरोसा नहीं कर सकता है। तालिबानी हिंदुस्तान के प्रति कैसा नजरिया रखते हैं यह सभी जानते हैं। विश्व राष्ट्रों की नजर में तालिबानी आतंक का पर्याय ही माने जाते हैं जिनकी अफगानिस्तान पर कब्जे की घटना को भारत के लिए बड़ा खतरा माना जा रहा है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि क्या भारत तालिबानियों को अपने सैन्य प्रतिष्ठानों में प्रशिक्षण देकर अपने ही खिलाफ लड़ने वाले सैनिक मुहैया कराएगा। अगर अफगानी कैडेटस जो आज आईएमए में प्रशिक्षण ले रहे हैं वह कल अगर तालिबानी सेना का हिस्सा बनते हैं तो इसका मतलब तो यही होगा। सवाल यह है कि अब इस अफगानी कैडेटस का भविष्य क्या होगा? वह कहां जाएंगे और अफगानिस्तान जाते हैं तो क्या यह आईएमए से प्रशिक्षित अफगानी कैडेटस तालिबानी सेना का हिस्सा बनेंगे।