टिकट बंटवारे के साथ ही घमासान

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भाजपा ने कल सूबे की 70 सीटों में से 59 सीटों के लिए अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर दी गई है। इस सूची में भाजपा द्वारा अपने 10 सिटिंग विधायकों को टिकट नहीं दिए गए। वहीं कुछ सीटों पर अभी—अभी पार्टी में आने वाले लोगों को टिकट देकर पार्टी के लिए लंबे समय से काम कर रहे और चुनावी तैयारियों में लगे पार्टी कार्यकर्ताओं व नेताओं को निराशा हाथ लगी है। यही कारण है कि भाजपा की सूची जारी होते ही पार्टी में असंतोष और बगावत की आग भड़कने लगी है। भाजपा की सभी सीटों के दावेदारों की लंबी फेहरिस्त थी। 50 से अधिक सीटों पर 5 से अधिक और दर्जनभर सीटों पर तो 10 से अधिक लोगों ने दावेदारी की थी। ऐसी स्थिति में बगावत को तय ही माना जा रहा था।कुछ सीटें तो ऐसी है जहां से सिटिंग विधायक अब निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने और कुछ कांग्रेस में जाने की धमकी दे रहे हैं। थराली से विधायक मुन्नी देवी ने कहा है कि वह चुनाव जरूर लड़ेंगी, भले ही उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़े। वहीं नरेंद्र नगर के सिंंटिंग विधायक ओम गोपाल रावत टिकट न मिलने से इस कदर नाराज हैं कि वह भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जाने की बात कह रहे हैं भीमताल से टिकट न मिलने और यम्केश्वर से रितु खंडूरी को टिकट न मिलने पर नाराजगी की खबरें आ रही है। पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा खानपुर से सिटिंग विधायक कुंवर प्रणव चौंपियन की पत्नी को टिकट देने का भी विरोध हो रहा है। कुल मिलाकर हालात यह हैं कि 2 दर्जन से अधिक सीटें ऐसी हैं जहां पार्टी के अंदर भारी असंतोष देखा जा रहा है। दरअसल टिकट को लेकर भाजपा में स्थिति एक अनार सौ बीमार जैसी ही है। पार्टी टिकट तो सिर्फ एक ही व्यक्ति को दे सकती है ऐसी स्थिति में जब हर सीट पर दावेदारों की संख्या अधिक हो तो लोगों में नाराजगी स्वाभाविक है। हर कोई यही चाहता है कि उसे टिकट मिले और वह विधायक बने। इस नाराजगी व असंतोष का पार्टी को भारी नुकसान भी होता है। जो टिकट के दावेदार होते हैं वही पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ काम करते हैं और उनकी ताकत भले ही खुद जीत पाने की न हो लेकिन उनके पास अपनी ही पार्टी प्रत्याशी को हराने की क्षमता जरूर होती है इस बात को पार्टी भी अच्छी तरह से जानती समझती है। भाजपा और कांग्रेस के बारे में यहां तक कहा जाता है कि उसे और कोई नहीं हरा सकता उसके खुद के सिवाय। सूबे की राजनीति में ऐसे कई उदाहरण हैं जब भाजपाइयों ने अपनी ही टीम के लीडर बीसी खंडूरी तक को चुनाव हरा दिया था और उसे इस हार के कारण सूबे की सत्ता से हाथ धोना पड़ा था। हालांकि टिकट बंटवारे के बाद असंतोष एक स्वाभाविक प्रक्रिया है तथा असंतोष को समाप्त करने के लिए हर पार्टी द्वारा असंतुष्टों को सत्ता में आने पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिए जाने का भरोसा दिलाया जाना भी लाजमी होता है। मगर असंतोष क्या गुल खिलाएगा इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। अब की बार 60 पार का नारा देने वाली भाजपा इस असंतोष के बीच 35 पार पहुंच जाए तो उसके लिए यह भी एक बड़ी चुनौती होगी। रायपुर जैसी विधानसभा सीटों पर जहां टिकट बंटवारे से भी पहले से भाजपा के कार्यकर्ताओं में घमासान मचा हुआ है। वहां जीत आसान काम नहीं होगी। वही दुर्गेश्वर लाल, सरिता आर्य और सुरेश गढ़िया जैसे जिन नए चेहरों पर भाजपा ने दांव लगाया है वह चुनाव में कितने सफल साबित हो पाते हैं यह भी समय ही बताएगा। जहां तक बात सिटिंग विधायकों की है तो हर कोई हरबंस कपूर तो हो नहीं सकता है कि पार्टी ने सत्ता में रहते हुए कुछ किया या न किया हो लेकिन उसकी जीत पक्की मानी जा सके। अब 10 मार्च को पता चलेगा कि ऐसी स्थिति में भाजपा कितने पार पहुंच पाती है।

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