नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना में 1976 में पारित 42वें संशोधन के अनुसार, “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को शामिल करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि संसद की संशोधन शक्ति प्रस्तावना तक भी फैली हुई है। प्रस्तावना को अपनाने की तारीख संसद की प्रस्तावना में संशोधन करने की शक्ति को सीमित नहीं करती है। इस आधार पर, याचिकाकर्ता के तर्क को खारिज कर दिया गया। सीजेआई ने सुनवाई के दौरान कहा, “लगभग इतने साल हो गए हैं, अब इस मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है।”
बता दें कि इससे पहले, पीठ ने याचिकाकर्ताओं की इस मामले को एक बड़ी पीठ को भेजने की याचिका को खारिज कर दिया था। हालांकि, सीजेआई खन्ना कुछ वकीलों की रुकावटों से नाराज होकर आदेश सुनाने वाले थे, लेकिन उन्होंने कहा कि वह सोमवार को आदेश सुनाएंगे। सीजेआई खन्ना ने 22 नवंबर को सुनवाई के दौरान कहा, “भारतीय अर्थ में समाजवादी होना केवल कल्याणकारी राज्य के रूप में समझा जाता है। भारत में समाजवाद को समझने का तरीका अन्य देशों से बहुत अलग है। हमारे संदर्भ में, समाजवाद का मुख्य रूप से अर्थ कल्याणकारी राज्य है।।। बस इतना ही। इसने कभी भी निजी क्षेत्र को नहीं रोका है जो अच्छी तरह से फल-फूल रहा है। हम सभी को इससे लाभ हुआ है। समाजवाद शब्द का प्रयोग एक अलग संदर्भ में किया जाता है, जिसका अर्थ है कि राज्य एक कल्याणकारी राज्य है और उसे लोगों के कल्याण के लिए खड़ा होना चाहिए और अवसरों की समानता प्रदान करनी चाहिए।” दिया था।