उत्तराखंड में सड़क हादसे लगातार बढ़ते जा रहे है। बीते कुछ दिनों से राज्य के अलग—अलग हिस्सों में हुए कई बड़े सड़क हादसों ने शासन—प्रशासन को भी झकझोर कर रख दिया है। बीती रात भी ऋषिकेश के नटराज चौक के समीप हुए भीषण सड़क हादसे में जहंा दो लोगों की जान चली गयी वहीं एक व्यक्ति गम्भीर रूप से घायल हुआ है। इससे पूर्व दून में एक आटो ड्राइवर की भी सड़क हादसे में मौत हो चुकी है। जबकि कुछ दिन पूर्व आशारोड़ी पर हुए भयंकर सड़क हादसे में छह वाहन दुर्घटना के शिकार हो गए थे गनीमत रही कि इसमें सिर्फ एक ही व्यक्ति की मौत हुई। इससे पूर्व दून में ही छह छात्रों की सड़क हादसे में जान चली गई थी वहीं अल्मोड़ा में बस के गहरी खाई में गिरने से 36 लोगों की मौत ने सड़क सुरक्षा पर बड़े सवाल कर दिए थे। खास बात यह है कि इन सड़क हादसों के पीछे कई ठोस वजह है। बात चाहे दून में 6 छात्रों की दर्दनाक मौत की हो या फिर अल्मोड़ा के बस हादसे की। इनमें तकरीबन अधिकतर घटनाओं में ड्रिंक व ड्राइविंग की बात सामने आई है। शासन—प्रशासन में बैठे अधिकारियों और नेताओं तथा मंत्रियों से लेकर आम आदमी तक इस बात को अच्छे से जानता है कि उत्तराखंड में 80 फीसदी सड़क हादसों का कारण नशा करके गाड़ी चलाना ही है। लेकिन इस पर पुलिस प्रशासन द्वारा सिर्फ कुछ समय के लिए ही ध्यान दिया जाता है। इससे कोई भी यह अनुमान लगा सकता है कि पुलिस प्रशासन इसे लेकर कितना गंभीर है। पीकर गाड़ी चलाने वाले वाहनों की स्पीड पर जब नियंत्रण नहीं रख पाते तो वह खुद तो मरते ही है उन्हें भी मार डालते हैं जिन्होंने पी नहीं है। राज्य की सड़कों पर अनफिट और अवैध वाहनों की भरमार दूसरी समस्या है। जिस पर परिवहन विभाग हमेशा लापरवाह बना रहता है। वही तीसरा बड़ा कारण है सड़कों की बदहाली। खास तौर से ग्रामीण और पहाड़ी क्षेत्र की सड़कों पर वाहन चलाना अपनी जान से खेलने जैसा ही बना रहता है। हर साल मानसून काल में सड़कों की हालत खराब हो जाती है जिसे सुधारने में सालों साल का समय लग जाता है। जब भी कोई बड़ा हादसा होता है तब शासन—प्रशासन कुछ समय चौकन्ना दिखाई देता है लेकिन थोड़े समय बाद फिर वहीं लापरवाही शुरू हो जाती है।