देहरादून। कोई भी योजना व्यवस्था जिसके माध्यम से हम अपने अस्तित्व के बीच कोई सेतु बनाये बहुत तरह से यह व्यवस्था बन सकती है ओर जिस ब्यवस्था से समाज का ओर जगत का अस्तित्व बन जाय वही व्यवस्था का नाम यज्ञ हैं। यह बात आज विश्व कल्याण के लिए पुरूषोत्तम मास के उपलक्ष में आयोजित श्रीमद्भागवत महापुराण के छटवें दिन प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य शिवप्रसाद ममगाँई ने कही।
ज्ञान वैराग्य के बिना भत्तिQ बोझिल है तथा भत्तिQ विहीन जीवन निःस्वाद है जैसे कई प्रकार के व्यंजन बनने पर भी नमक के बिना स्वाद नही आता उसी प्रकार सुख प्राप्ति पर भी यदि भक्ति नही है तो ऐसे जीवन की निःस्वादता है। ज्ञान की बाते करने की नही है। ज्ञान का अनुभव करना है। ज्ञानी पुरुष में किसी समय भी ज्ञान का अभिमान नहीं रहता है। प्राणियों के ऊपर परमात्मा प्रेम की वर्षा करते हैं। जीव इस लायक न हो तब भी परमात्मा उसे पैसे और प्रतिष्ठा देते हैं। जीव दुष्ट है किंतु परमात्मा दयालु हैं। परमात्मा के दिये हुए शरीर को एक न एक दिन छोड़ना पड़ेगा। उससे पहले ब्रह्म विघा को जान लो। सत्संग का आश्रय लो। वृद्धावस्था में बूढा सत्रह बार बीमार पड़ता है। अठारहवीं बार काल यवन अर्थात काल आता है और अपने साथ ले जाता है। प्रवर्ति अपने को छोड़े इससे पूर्व समझकर प्रवर्ति को छोड़ दें। यह बुद्धिमानी की बात है। बासठ का अर्थ यह है कि अब तुमने वन में प्रवेश किया है। वन में जाकर रोज ऐसी अवस्था जब आ जाये ग्यारह हजार बार भगवान के नाम का जाप करो। जप किये बिना पाप वासना नहीं छूटती है ।
आज विशेष रूप से विना जोशी, प्रेम पेटवाल, सावित्री देवी, गुड्डी पेटवाल, परवीन ममगांई, पुष्पा सुन्दरियाल, डॉ कुशाग्र और सृष्टि शर्मा, प्रवीन ममगांई कामाक्षी ममगांई, आचार्य नथी लाल भट, कार्तिकेय ममगांई, विनायक, जितेंद्र जोशी, गीता जोशी, मधु गुसाई, रजनी राणा, किरन शर्मा, विजय शर्मा, सबिता मंगू, सुशील मंगू, देवेश्वरी डंडरियाल कमल बिष्ट, पत्रकार नौडियाल, अश्वनी रूची भटृ, संजय भटृ, आचार्य दामोदर सेमवाल, आचार्य संदीप बहुगुणा, आचार्य दिवाकर भटृ, आचार्य हिमांशु मैठानी, आचार्य सूरज पाठक, शतक्षी नैथानी, यथार्थ नैथानी आदि उपस्थित थे।