परिणाम से पूर्व ही घमासान

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मतदान समाप्त होते ही सियासी दल और नेता हार जीत का आकलन करने में जुटे हुए हैं वहीं भाजपा नेताओं द्वारा चुनाव में भितरघात के आरोपों को तो कांग्रेस में भावी मुख्यमंत्री को लेकर घमासान शुरू हो गया है। भाजपा व कांग्रेस के बारे में कहा जाता है कि उन्हें अगर कोई हरा सकता है तो वह खुद ही खुद को हरा सकते हैं। भाजपा के विधायक जिस तरह एक के बाद एक अपनी ही पार्टी के लोगों पर भितरघात कर उन्हें हराने का प्रयास किए जाने का आरोप लगा रहे हैं उसे भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता है। टिकट बंटवारे के बाद ही हालांकि यह साफ हो गया था कि भाजपा के अंदर भारी असंतोष है। जिन सिटिंग विधायकों के टिकट काटे गए वह तो नाराज थे ही साथ ही दूसरे दलों से आए लोगों को टिकट और महत्व दिए जाने को लेकर भी पार्टी के जमीनी नेता और कार्यकर्ता नाराज थे। जो सालों से अपने—अपने विधानसभा क्षेत्रों में काम कर रहे थे और सालों से पार्टी का काम कर रहे हैं उनकी नाराजगी स्वाभाविक थी। भाजपा ने हालांकि इस डैमेज कंट्रोल के भरपूर प्रयास किए थे परंतु सब कुछ सामान्य नहीं हो सका। इस चुनाव में भाजपा के आठ बागी प्रत्याशी निर्दलीय चुनाव मैदान में डटे रहे जो पार्टी को नुकसान देय साबित होंगे वैसे ही लगभग इतनी ही सीटों पर भितरघात की खबरें भी है। कुल मिलाकर इन बागियों व भिरतघातियों के कारण 15—16 सीटों पर चुनाव परिणाम अगर प्रभावित होते हैं तो उसे पार्टी के लिए एक बड़ा नुकसान माना जा सकता है। भले ही भाजपा की इस स्थिति को लेकर कांग्रेस के नेता खुश हो रहे हो और उन्हें यह लग रहा हो कि इससे उनकी राह आसान हो सकती है लेकिन यह भी उनका भ्रम ही है। कांग्रेस में भी टिकटों के बंटवारे को लेकर जिस तरह का अंसतोष रहा है वह भी कम नहीं है, उनकी पार्टी के भी पांच बागी चुनाव में थे। बात अगर लाल कुआं सीट की ही की जाए तो हरीश रावत के खिलाफ चुनाव लड़ने वाली संध्या डालाकोटी को वह लाख कोशिशों के बाद भी नहीं मना सके। पूर्व सीएम हरीश रावत जो खुद के चुनाव जीतने और सत्ता में आने का जो दावा कर रहे हैं उसका आधार क्या है? यह वही समझ सकते हैं। 2017 के चुनाव में जब वह दो—दो सीटों से चुनाव हार गए थे तब इस चुनाव में वह अपने व अपनी बेटी दोनों के चुनाव जीतने के दावे कैसे कर रहे हैं उनका यह कहना है कि कांग्रेस 45 से 48 के बीच सीटें जीतेगी और वह मुख्यमंत्री बनेंगे या फिर घर बैठेगेंं। क्या वह कुछ ज्यादा जल्दबाजी में नहीं है। अभी चुनाव परिणाम आने में 22 दिन का समय शेष है और मुख्यमंत्री बनने के लिए पहले कांग्रेस की और फिर उनकी जीत भी जरूरी है। उन्हें इस राज्य के राजनीतिक इतिहास को नहीं भूलना चाहिए। पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी की वह हार भी याद होगी जब उनकी खुद की हार ने उन्हें व भाजपा दोनों को सत्ता से बाहर कर दिया था। 2022 का चुनाव तो अनेक विसंगतियां वाला चुनाव रहा है।

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