मोदी के निर्णय का संदेश

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धन्य है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उसके वह मंत्रिमंडल सहयोगी तथा पार्टी के नेता जो दो दिन पहले तक उन तीनों कृषि कानूनों को किसानों के हित में बताकर उसके गुणगान करते नहीं थकते थे और अब इन कानूनों को वापस लेने पर भी उनका यशोगान कर रहे हैं। उनकी उदारता और जन भावनाओं का सम्मान करने की बात कहकर उनके फैसले को एक साहसिक निर्णय बता रहे हैं। प्रधानमंत्री ने फैसला क्यों वापस लिया? इस पर जितने दल और जितने नेता उतनी प्रतिक्रियाएं आ रही है। स्वतंत्रता के बाद इतिहास के सबसे लंबे आंदोलन के बाद मोदी सरकार ने अगर अपना फैसला बदला है तो वह बिना किसी भारी वजह के तो हो ही नहीं सकता। लेकिन क्या जिन कारणों से मोदी सरकार को यह यू टर्न लेना पड़ा है फैसला बदलने से वह वजह खत्म या निष्प्रभावी हो जाएगी? इसका जवाब सभी देशवासियों को पांच राज्यों के आगामी साल होने वाले विधानसभा चुनावों के बाद ही मिल सकेगा। फिलहाल तो इतना समझना ही काफी है कि कोई भी सरकार अगर जन भावनाओं के साथ खिलवाड़ करती है तो भले ही उस सरकार का कितना भी प्रचंड बहुमत हो उसका हश्र वही होता है जो वर्तमान मोदी सरकार का हो रहा है। दो दिन पूर्व तक अपने हर फैसले पर चाहे वह सही हो या गलत हिमालय की तरह अडिग खड़ी दिख रही मोदी सरकार अब व्यथित और विचलित दिख रही है। उसकी दृढ़ता की नींव हिल चुकी है। इसका एहसास पार्टी के सभी बड़े नेताओं को भी हो रहा है भले ही वह इसका इजहार करें या न करें। इस आंदोलन को समाप्त कराने के लिए सत्ता में बैठे लोगों ने न सिर्फ एक साल लंबा इंतजार किया बल्कि सत्ता के हर बल—छल का इस्तेमाल किया लेकिन वह अपने मकसद में सफल नहीं हो सके। जब जनता ने भाजपा नेताओं को उनके ही संसदीय व विधानसभा क्षेत्रों में खदेड़ना शुरू कर दिया और उन्हें घुसने न देने का ऐलान होने लगा तब कहीं जाकर भाजपा के नेताओं को यह समझ आ सका कि यह किसान आंदोलन उनका खेल बिगाड़ सकता है। अब प्रधानमंत्री मोदी सच्चे मन व सच्चे हृदय से माफी भी मांग रहे हैं और तीनों कानूनों को वापस भी लेने को तैयार हैं लेकिन क्या वह देश की जनता जिसने उन्हें सत्ता शीर्ष पर बैठाया था, उन्हें मन व हृदय से माफ भी कर सकेगी? यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि उसने यह सब देखा और सहा है जो बीते एक साल में देश के किसानों ने झेला है और वह भी कि सरकार ने उन्हें किस तरह सताया और तंग किया है। एक अन्य बात जो सबसे महत्वपूर्ण है वह यह है कि यह किसान आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है। एमएसपी जैसी कई अन्य किसानों की समस्याएं अभी भी बाकी है जिनका निस्तारण जरूरी है। इस किसान आंदोलन से भाजपा और मोदी सरकार का गणित गड़बड़ा तो चुका है लेकिन अब डैमेज कंट्रोल में जुटे मोदी व योगी तथा उनकी सरकारें कितनी अपने मकसद में सफल हो पाती हैं यह आने वाला समय ही बता पाएगा।

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