- कौन संभालेगा चुनौतियों का अंबार
देहरादून। उत्तराखंड में होने वाले निकाय चुनाव में कौन किस पर कितना भारी पड़ेगा यह तो चुनाव परिणाम ही बताएंगे लेकिन देहरादून के महापौर पद पर इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर होने जा रही है। राजधानी दून के महापौर का चुनाव जिन जमीनी मुद्दों पर होने जा रहा है उस पर सभी की निगाहें टिकी हुई है।
बीते 15 सालों से दून नगर निगम पर भाजपा अपना कब्जा बनाए हुए हैं। निवर्तमान महापौर सुनील उनियाल गामा चाहते थे कि भाजपा उन्हें ही फिर चुनाव लड़ने का मौका दे लेकिन भाजपा ने अपने सभी निवर्तमान पालिका अध्यक्षों व महापौरों को बाहर का रास्ता दिखाते हुए नए चेहरों को मैदान में उतारा है। निवर्तमान दून के महापौर पर वैसे भी भ्रष्टाचार और आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने तथा निगम की जमीनों को व्यापक स्तर पर खुर्द—बुर्द करने के आरोप लगाये जाते रहे हैं इसलिए उन्हें टिकट मिलना संभव नहीं था इसलिए भाजपा ने सौरभ थपलियाल को चुनाव मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने सौरभ के मुकाबले जिन वीरेंद्र पोखरियाल पर भरोसा जताया है उसके मद्देनजर एक बात तो साफ है कि प्रत्याशी चयन के दृष्टिकोण से यह एक सर्वाेत्तम चयन है।
दो युवा छात्र नेताओं के बीच होने वाला यह चुनावी मुकाबला इसलिए भी अधिक दिलचस्प रहने वाला है क्योंकि दोनों ही प्रत्याशी जिन चुनावी मुद्दों पर एक दूसरे से बढ़त बनाने का दावा कर रहे हैं वह जमीनी मुद्दे हैं। भले ही हम कई दशकों से स्वच्छ दून, सुंदर दूंन और शिक्षित दून व स्वस्थ दून जैसे स्लोगन सुनते आए हो लेकिन यथार्थ में इन मुद्दों पर किसी ने बीते 20 साल से रत्ती भर भी काम नहीं किया है। राजधानी बनने के बाद लोग एक बीमार दून और बदहाल दून में जीने पर विवश है। दून में विकास के नाम पर वृक्षों का अंधाधुंध कटान और स्मार्ट सिटी के नाम पर की गई शहर की खुदाई से लोग परेशान है। यातायात व्यवस्था का हाल यह है कि जो सफर 10 मिनट में होना चाहिए वह घंटों में हो रहा है सड़कों के गड्ढे और वातावरण में धूल ही धूल सांसों पर भारी पड़ रही है।
दून नगर निगम का बढ़ता क्षेत्रफल, आबादी, सफाई व्यवस्था, यातायात व्यवस्था से लेकर कूड़ा निस्तारण और पार्किंग व्यवस्था जैसी गंभीर कई समस्याएं दून के सामने मुंह बाए खड़ी है। दून की इन गंभीर बीमारियों का इलाज करना किसी भी महापौर के लिए बड़ी चुनौती जरूर रहेगा लेकिन उम्मीद की जानी चाहिए कि दून के बिगड़े स्वरूप को संवारने की जिम्मेदारी जनता जिसे भी सौंपेगी वह मलिन बस्तियों से लेकर अन्य तमाम समस्याओं के समाधान का रास्ता निकालने के लिए काम करेगा। जमीनी मुद्दों पर लड़ा जाने वाला यह चुनाव न सिर्फ कांटे का होगा बल्कि रोमांचक भी रहने वाला है।





