जान से ज्यादा जहान की चिंता

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कोरोना काल में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर आम आदमी हैरान परेशान है। चुनाव आयोग द्वारा अभी जब चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा की गई थी तब देश में कोरोना की तीसरी लहर शुरू हो चुकी थी। लेकिन बीते चार—पांच दिनों में पूरे देश और चुनावी प्रदेशों में कोरोना के मामले जिस तेजी से बढ़ रहे हैं अगर उसका यही क्रम जारी रहता है तो क्या यह चुनाव निर्विघ्न संपन्न हो सकेंगे? यह सवाल उस दिन भी बना हुआ था जिस दिन चुनाव कार्यक्रम घोषित किया गया था और आज भी बना हुआ है। चुनाव आयोग ने भले ही इस बात की प्रतिबद्धता जताई हो कि वह समय पर कोरोना सुरक्षा के साथ शांतिपूर्ण और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए प्रतिबद्ध है तथा उसके फैसले में यह प्रतिबद्धता दिखाई भी दे रही है लेकिन महामारी जैसी आपदाओं में इस तरह के आयोजन कितनी बड़ी चुनौती है इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। भले ही चुनाव आयोग द्वारा रैलियों, जनसभाओं, रोड शो और नुक्कड़ नाटकों तथा ऐसे सभी कार्यक्रमों पर रोक लगा रखी हो जो भीड़ जमा होने की संभावनाओं वाले हैं मगर लाख सख्ती के बाद भी राजनीतिक गतिविधियों पर पूर्ण पाबंदी के साथ चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं। देश के सर्वाेच्च न्यायालय से लेकर तमाम राज्यों के हाई कोर्ट भी इस बारे में अपने सुझाव और सोच से केंद्र सरकार व चुनाव आयोग को अवगत करा चुके हैं। यही नहीं अभी भी इन चुनावों को टालने के संबंध में याचिकाएं दायर किए जाने का सिलसिला जारी है। लेकिन चुनाव आयोग के रुख से साफ है कि वह चुनावी प्रक्रिया को रोकने के पक्ष में नहीं है। राजनीतिक दलों और नेताओं की सोच तो और भी अधिक खतरनाक है। वह चुनाव को किसी भी सूरत में टाले जाने के पक्ष में तो है ही नहीं, साथ ही उन्हें तो चुनाव आयोग के प्रतिबंध भी अत्यधिक खल रहे हैं। कई दल और नेता तो चुनाव प्रचार की पाबंदियों से नाराज भी हैं और इसे छोटे तथा क्षेत्रीय दलों के साथ भेदभाव भी बता रहे हैं। दरअसल नेताओं को आम आदमी की जान की सुरक्षा से कुछ लेना देना नहीं है उन्हें तो सिर्फ वोट और सत्ता हासिल करने के अलावा कुछ और सूझ ही नहीं रहा है। चुनाव कार्यक्रमों की घोषणा से पहले इन दलों व नेताओं ने जिस तरह से ताबड़तोड़ रैलियां और जनसभाएं की उनका ही नतीजा है कि देश भर में कोरोना केस अप्रत्याशित रूप से बढे़ हैं। अगर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की बात करें तो चुनाव के कार्यक्रमों से पूर्व यहां कोरोना केसों की संख्या 50 और 100 से अधिक नहीं थी। लेकिन आज हालात यह है कि उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में भी बीते 3 दिनों से 3000 से अधिक नए मामलें हर रोज सामने आ रहे हैं ठीक वैसा ही हाल उत्तर प्रदेश का भी है। डॉक्टरों का अनुमान है कि जनवरी के अंत तक देश में 6 से 8 लाख तक नए कोरोना केस आ सकते हैं और मरने वालों की संख्या भी 2 से 3000 तक रोज पहुंच सकती है। सवाल यह है कि क्या एक बार लाक डाउन जैसी स्थिति का खामियाजा भुगत चुका देश कितनी भी विकराल स्थिति में फिर लाकडाउन के लिए तैयार नहीं है अगर नहीं है तो क्या इससे बड़े जानमाल के खतरे की संभावनाएं नहीं है? कई सवाल हैं लेकिन अब यह तय है कि न चुनाव रुकेगा और न लॉकडाउन होगा। जहान और जान की बात करने वाले अब जान की परवाह छोड़ कर जहान के बारे में ही सोच रहे हैं। यह कितना सही या गलत साबित होगा आने वाला समय ही बताएगा।

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