वरिष्ठ पूर्व कांग्रेसी नेता और कई बार के मंत्री तथा विधायक दिनेश अग्रवाल जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम चुके हैं, द्वारा कांग्रेस के नेताओं को सलाह दी गई है कि वह कांग्रेस पार्टी से हो रहे पलायन पर चिंतन करें। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि बीते डेढ़—दो दशकों में जब से कांग्रेस केंद्रीय सत्ता से बाहर हुई है उत्तराखंड ही नहीं तमाम अन्य राज्यों में भी कांग्रेस में ऐसी भगदड़ मची हुई है कि तमाम दिग्गज नेता पार्टी छोड़कर भाजपा में भाग गए हैं। दिनेश अग्रवाल ने भले ही कांग्रेस में पलायन की बात की हो लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर अगर इसकी समीक्षा की जाए तो अकेली कांग्रेस ही नहीं तमाम बड़े और क्षेत्रीय दलों से भी यह पलायन हुआ है। तमाम दलों में विभाजन और विघटन के इस दौर में इसका पूरा—पूरा लाभ भाजपा को ही मिला है। जिसके दम पर आज वह स्वयं को देश ही नहीं विश्व की सबसे बड़ी पार्टी बता कर अपनी पीठ थपथपाती देखी जा सकती है तथा स्वयं को अजेय मान चुकी है। विघटन और विभाजन की प्रकिया ने जहां भाजपा को अतिरिक्त मजबूती दी है वही कांग्रेस सहित सभी तमाम बड़े और क्षेत्रीय दलों को इतना कमजोर कर दिया है कि वह अपने वजूद और अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं तथा एकजुट होकर भी भाजपा का किसी भी चुनाव में मुकाबला कर पाने में स्वयं को असमर्थ पा रहे हैं या हो चुके हैं। नेताओं का एक दल को छोड़कर दूसरे दलों में जाने यानी होने वाले विभाजन की प्रक्रिया भले ही नई न हो लेकिन बीते समय में भाजपा ने इसे अपनी चुनावी रणनीति का एक अहम हथियार के तौर पर प्रयोग किया है। जिसे समझने में सत्ता के स्वार्थी नेता विफल साबित हुए हैं। किसी भी दल में विभाजन या कुछ नेताओं का एक दल से दूसरे में जाने का अहम कारण उनका निजी राजनीतिक स्वार्थ ही होता है या फिर उनके कुछ काले कारनामे जिनके खुलासे और जेल जाने का डर ही उन्हें दल बदल के लिए मजबूर करता है। चुनाव के दौरान ईडी और सीबीआई के दुरुपयोग का मुद्दा और नेताओं को जेलों में ठूसे जाने की तमाम घटनाएं राजनीतिक चर्चाओं के केंद्र में रही हैं। अगर कोई दल लंबे समय तक सत्ता से बाहर रहता है तो उसके नेताओं में बेचैनी इसलिए भी बढ़ जाती है कि उन्हें सत्ता की मलाई खाने को नहीं मिल पाती है जिसके वह आदी हो चुके होते हैं। ऐसे नेताओं को सत्ताधारी दलों के साथ जाने में जरा भी देर नहीं लगती है। 2016 में उत्तराखंड कांग्रेस में हुए विभाजन ने राज्य में कांग्रेस को इतना कमजोर कर दिया कि वह आज तक भी इस झटके से उबर नहीं पाई है जहां तक कांग्रेस की बात है उसके अंदर दो तरह की महाभारत निरंतर जारी है एक महाभारत उन नेताओं के बीच चल रही है जो कांग्रेसी ही है यह नेता स्वयं को ही सबसे बड़ा नेता सिद्ध करने की होड़ में एक दूसरे को पछाड़ने में जुटे रहते हैं वहीं दूसरी महाभारत उन नेताओं के साथ छिडी रहती है जो पूर्व कांग्रेसी नेता कहलाते हैं जिसमें विजय बहुगुणा और दिनेश अग्रवाल तक अनेक नेताओं के नाम शामिल हैं। भाजपा नेताओं को किसी भी चुनाव में सिर्फ चुनाव लड़ना होता है लेकिन अन्य दलों चाहे वह कांग्रेस हो या कोई और उसे भाजपा से चुनाव लड़ने के साथ ही पहले अपनों के साथ लड़ाई लड़नी पड़ती है ऐसी स्थिति में उसके जीतने की आप क्या उम्मीद कर सकते हैं।