अंबेडकर एक राष्ट्रीय सोच

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आज हमारे राष्ट्रवासी लोग डा. भीमराव अंबेडकर की 134वीं जयंती मना रहे हैं। भले ही यह कोई पहली बार नहीं हो रहा हो अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त होने के बाद डा. भीमराव अंबेडकर द्वारा देश के संविधान की संरचना में जो असाधारण योगदान किया गया और देश को एक ऐसा संविधान दिया गया जो आजादी के 75 साल बाद भी अपनी प्रासंगिकता के लिए पूरे विश्व में जाना जाता है। जिसने देशवासियों को सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में हर जाति धर्म और क्षेत्र के लोगों को समानता का अधिकार दिया है उस संविधान के कारण ही आज तक डा. अंबेडकर को संविधान निर्माता के रूप में न सिर्फ जाना जाता है बल्कि वह हम सभी के लिए आदर्श बने हुए हैं। लेकिन इस बार उनकी जयंती पर जिस तरह की धूम दिखाई दे रही है वह बहुत खास है। हर बार की जयंती से अलग है। यही कारण है कि आज कुछ मुद्दों पर विचार किया जाना भी जरूरी हो गया है। संसद भवन से लेकर तमाम विधानसभा भवनों से लेकर हर गली कूचे तक इस विशेष धूम के पीछे कुछ खास कारण भी निहित है। 2024 के लोकसभा चुनाव में एक मुद्दा जो सबसे बड़ा मुद्दा बनाकर पूरे चुनाव में छाया रहा था वह संविधान बदलने का मुद्दा था। और क्योंकि संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर को कहा जाता है इसलिए अंबेडकर वादियो या फिर अंबेडकर के नाम पर दलितों और पिछड़ो की राजनीति करने वालों में इसे लेकर खास उबाल देखा गया था। भाजपा के कुछ नेताओं द्वारा 400 पार के नारे को इसलिए सार्थक बनाने की जो अपील की गई थी उसके पीछे का उद्देश्य संविधान बदलना ही बताया गया था। चुनाव के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में यह कहकर की अंबेडकर,अंबेडकर,अंबेडकर की रट लगाना कुछ नेताओं का पैशन बन चुका है इतनी बार अगर वह राम का नाम जपते तो उन्हें भगवान मिल जाते, ने आग में घी डालने का काम किया गया था। उनके इस बयान के बाद पूरे देश में बवाल हो गया था। डॉ अंबेडकर को अपना मसीहा और आदर्श मानने वालों ने उनके इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। इन तमाम घटनाओं की रोशनी में अगर तमाम वर्तमान अंबेडकर जयंती की धूम को देखा जाए तो यह साफ समझ जा सकता है कि यह उस प्रतिक्रिया के कारण ही है। महापुरुषों के कद को काट छांटकर अपना पद और नाम का झंडा ऊंचा करने वाले लोगों से यह पूछा जाना भी जरूरी है कि डा. अंबेडकर की जयंती या महात्मा गांधी की जयंती धूमधाम से मानने या उनकी प्रतिमाओं की साफ सफाई करने और उन्हें फूल मलाएं समर्पित करने भर से ही सब ठीक हो सकता है असल सवाल है उनके द्वारा बनाई गई व्यवस्थाओं को आत्मसात करने की है। अभी तमिलनाडु के राज्यपाल के विवेक के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट की उस तल्ख टिप्पणी पर गौर किया जाना भी जरूरी है जो संविधान की व्यवस्थाओं को तार—तार कर रही है। राज्य सरकारों द्वारा पारित विधेयकों को सालों लटकाए रखने का काम जो राज्यपालों द्वारा किया जा रहा है? क्या वह संविधान और डॉ अंबेडकर की अवमानना और अवहेलना नहीं है। हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और वाली कहावत को चरितार्थ करने वाले नेता व राजनीतिक दल अपना असली चेहरा छुपाने के लिए चाहे कितनी भी कोशिश कर ले न वह अपना चेहरा छुपा सकते हैं और न अंबेडकर तथा महात्मा गांधी को मिटा सकते हैं। क्योंकि वह कोई व्यक्ति नहीं थे एक राष्ट्रीय सोच थे।

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