कल बालिका दिवस के अवसर पर देश के प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संदेश में कहा कि वह और उनकी सरकार बालिकाओं को बलवान बनाने के प्रति कृत संकल्प है। वहीं नेता विपक्ष राहुल गांधी ने भी अपने एक संदेश में कहा कि शक्ति, साहस और समर्पण की प्रतीक देश की बेटियों को उज्जवल और सुरक्षित भविष्य दिये जाने की जिम्मेवारी लेने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए। आप सभी लोेगों ने बेटी बचाव व बेटी पढ़ाओं जैसे नारे लिखे विज्ञापन भी जरूर देखे होगें। अभी पिछले दिनों उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी ने ट्टलड़की हूं लड़ सकती हूं, जैसे उत्तसाह वर्धक वक्तव्य देकर सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा था। सवाल यह है कि जब देश अपनी आजादी की जयंती मना रहा है तब आजादी के इस अमृतकाल में अगर बेटियों की सुरक्षा और उनके भविष्य को लेकर किये जाने वाली बातों की क्यों जरूरत पड़ रही है? निःसंदेह आजादी के 75 साल बाद भी हमारा देश अपनी पुरूष प्रधानता वाली मानसिकता से ऊपर नहीं उठ पाया है। अगर हम महिलाओं और लड़कियों को एक सुरक्षित और उज्जवल भविष्य दे सके होते तो हमें आज न तो महिला दिवस मनाने और बालिका दिवस मनाने की जरूरत नहीं पड़ती। बात चाहे कन्या भू्रण हत्याओं की हो अथवा परिवार और समाज में उनके विच्छेद किये जाने वाले उनके सौतेले व्यवहार की अथवा उनकी राजनीतिक और आर्थिक अधिकारों की किसी भी क्षेत्र में हम महिलाओं और लड़कियों को उनका समानता का अधिकार देने से कतराते ही रहे है यहीं कारण है कि आज भी देश की महिलाओं को अपनी सुरक्षा और अधिकारों के लिए संसद से लेकर सड़कों तक संघर्ष करना पड़ रहा है। जिसकी मिसाल के तौर पर हम महिलाओं को दिये जाने वाले आरक्षण जिस पर दशकों से संसद में चर्चा और बातें तो हो रही है लेकिन अभी तक उन्हे यह अधिकार नहीं दिया जा सका है वर्तमान सरकार द्वारा भी नारी वंदन के नाम से लाये जाने वाले कानून को अमली जामा न पहनाए जाना इसका एक उदाहरण है। अभी हमने महिला पहलवानों का वह आंदोलन भी जन्तर—मन्तर पर देखा था जब सत्ता में बैठे मंत्री पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली देश की बेटियों को न्याय दिलाने की बजाय सड़कों पर घसीटा जा रहा था। इस कड़ी में मणिपुर से आयी वह शर्मशार करने वाली तस्वीरें जिन्हे देखकर किसी का भी सर शर्म से झुक जाये लड़कियों व महिलाओं की क्या जमीनी हकीकत है समझा जा सकता है। गनीमत है कि डा. अम्बेडकर के संविधान में जद्दोजहद के बाद ही सही महिलाओं को मताधिकार मिल सका अगर उनके पास वोट का यह अधिकार भी न होता तो 75 साल बाद भी देश के नेताओं को उनके उज्जवल भविष्य या उन्हे बलवान बनाने का ख्याल भी शायद कभी नहीं आता। आज इन महिला वोट को हासिल करने के लिए ही राजनीतिक दल और नेता उन्हे समान अधिकार और अन्य सुविधाएं देने को तैयार दिख रहे है। इन्हे पता चल चुका है कि बिना इनके वोट के वह किसी सूरत में सत्ता में नहंी बने रह सकते है। इसलिए अब वह कन्याओं के पैर पखार रहे है और उन्हे समान्य अधिकार देने की बात भी कर रहे है। अपनी पत्नी और नाबालिग बेटियों को घर से निकाल देने के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि एक तरफ देवी पूजन और दूसरी तरफ बेटियों की अनदेखी करने वाले क्रूर व्यक्ति को वह अपनी अदालत में प्रवेश करने की इजाजत नहीं देगें। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी काबिले गौर है। दो दिन पूर्व देवभूमि के बागेश्वर में एक नवजात कन्या को बोरे में लपेट कर फेंकने की दिल दहला देने वाली घटना भी सामने आयी थी। भले ही बेटियाें व महिलाओं को अब तक दीन हीन बनाये रखने और उनका उत्पीड़न करने की हदें लांघी जाती हो लेकिन आने वाले दिनों में महिलाएं व बालिकांए अपने दम पर इतनी सशक्त जरूर बन जायेगी जब उन्हे किसी के भी संरक्षण की जरूरत नहीं होगी।





