आस्था का महाकुंभ

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संगम नगरी प्रयागराज में आयोजित होने वाला महाकुंभ का मेला इन दिनों विश्व भर में चर्चाओं के केंद्र में है। आस्था और सनातन के प्रतीक महाकुंभ का यह मेला महज एक मेला भर नहीं है। साधु—संतों और ऋषि—मुनियों के समागम और सनातन के धर्म संस्कृति के वाहक के रूप में आयोजित किए जाने वाला यह धार्मिक आयोजन विश्व का सबसे बड़ा आयोजन है। इसकी विशेषता का अंदाजा इस आयोजन में उमड़ने वाले श्रद्धा के जन सैलाब से लगाया जा सकता है। 13 जनवरी मकर संक्रांति के मंगल स्नान के साथ शुरू हुए इस महाकुंभ में अब तक लाखों की संख्या में लोग पवित्र संगम में स्नान कर चुके हैं। 45 दिन चलने वाले इस महाकुंभ में देश—विदेश के 40 करोड़ लोगों के आने की संभावना है जिसमें 15 लाख से अधिक विदेशी श्रद्धालु होंगे। खास बात यह है कि इस भव्य आयोजन के लिए केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा तैयारी भी उतनी ही भव्य व उच्च स्तरीय की गई है। हर बार की तरह इस बार भी प्रयागराज में महाकुंभ के आयोजन में करोड़ों की संख्या में साधु—संत और ऋषियों तथा मुनियों का अद्भुत संगम देखा जा रहा है। सभी अखाड़ों और संप्रदायों के संत इस आयोजन में आए हुए हैं। पृथक—पृथक पूजा पद्धतियों और मान्यताओं के साथ किसी एक स्थान पर संतों की उपस्थिति तथा पेशवानी और शाही स्नान की परंपरा का जो अद्भुत दृश्य महाकुंभ में देखने को मिलता है वह सनातन की उन गौरवमई परंपराओं और संस्कृति का अनोखा नजारा पेश करता है। भारत में कड़ाके की सर्दी पड़ रही है लेकिन इस भीषण सर्दी के दौर में साधु—संतों की संगत के अनोखे रंग देखकर लोग दंग है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब देवताओं और असुरों द्वारा समुद्र मंथन किया गया तो उस मंथन से निकलने वाले रत्न में वह अमृत कलश भी था जिसके लिए देव व असुरों के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई थी इसी संघर्ष के दौरान अमृत कलश जिसे कुंभ या घड़ा भी कहा जाता है, से कुछ बूंद छलक कर पानी में गिर गई थी। मानता है इस दिन पवित्र नदियों का जल अमृतमय् हो जाता है जिसमें नहाने और दान पुन्न करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। इस महाकुंभ का आयोजन सदियों से अनावृत जारी है। इस महाकुंभ के आयोजन के दौरान सनातन और भारतीय संस्कृति की उस अद्भुत छठा के दर्शन भी होते हैं जिसका भारत ध्वजवाहक रहा है। कहा जाता है कि साधु—संतों की जाती नहीं होती है महाकुंभ में आने वाले लोगों की भी वास्तव में कोई जाति नहीं होती है धर्म जाति और सीमा के प्रतिबंधों से मुक्त महाकुंभ में किसी पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है। कोई भी बिना रोक—टोक इस आयोजन में भागीदार हो सकता है और स्नान कर सकता है। लेकिन यहां अराजकता का कोई स्थान नहीं होता है। 45 दिन तक चलने वाले इस बड़े आयोजन में 40 करोड लोगो के रहने खाने और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने का काम भी कम चुनौती पूर्ण नहीं है। इसके लिए पूरे मेला क्षेत्र में टेंट की व्यवस्था की गई है जो आधुनिक सुविधाओं से लैस है। एक समय था जब इस आयोजन में सीमित संख्या में लोग पहुंच पाए थे क्योंकि आवागमन के साधन सीमित थे। लेकिन समय के साथ अब महाकुंभ का स्वरूप भी बदल चुका है तथा यह एक धार्मिक पर्यटन का रूप ले चुका है। आपकी व्यय क्षमता के अनुरूप आप सुविधा भी हासिल कर सकते हैं। महाकुंभ को अब एक इवेंट के रूप में देखा जाने लगा है जिसका प्रचार प्रसार भी किया जाता है और मेहमानों को आमंत्रित भी किया जाता है जबकि पूर्व समय में महाकुंभ का यह मेला विशुद्ध रूप से एक धर्म और आस्था से जुड़ा आयोजन ही हुआ करता था। शासन—प्रशासन इस महाकुंभ को सुरक्षित व शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न करा सके यह एक बड़ी उपलब्धि होगी।

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