राजनीति धक्का—मुक्की वाली

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देश की राजनीति के अनगिनत रंग अब तक देश के लोग देख चुके है। लेकिन सत्ता में बने रहने और सत्ता को अपने अनुकूल चलाने के लिए विपक्ष के साथ इस तरह का संघर्ष शायद इससे पहले किसी ने कभी नहीं देखा होगा। संविधान पर चर्चा करने वाले देश के माननीयों का संसद भवन के प्रवेश द्वार पर धक्का मुक्की का जो नजारा देश के लोगों ने देखा वह भले ही हैरान करने वाला सही लेकिन इसकी संभावनाए पहले से ही दिखायी दे रही थी। किसने किसको धक्का मारा और कैसे किसका सर फूटा इसे लेकर अब सभी अपना—अपना पक्ष रखने में जुटे है। थाने—चौकी जा रहे है एफआईआर भी दर्ज करा रहे है। लेकिन इसके सबूत उनके पास नहीं है। संसद की सुरक्षा में लगे सीसीटीवी से भी संसद द्वारा कोई ऐसी अधिकृत तस्वीरे जारी नहीं की गयी है। जो यह बता सकें कि सच्चाई क्या है। भाजपा नेताओं द्वारा राहुल गांधी पर शारीरिक बल प्रयोग किये जाने का आरोप लगा रहे है। लेकिन कांग्रेस नेता भी इसका पुरजोर विरोध कर रहे है तथा उनका कहना है कि वह एक साक्ष्य लाकर दिखाये कि राहुल गांधी ने किसी सांसद को धक्का मारकर गिराया हो। कांग्रेस का कहना है कि वह संसद के अन्दर जाने का प्रयास कर रहे थे तो भाजपा के सांसदों द्वारा ही उन्हे बल पूर्वक रोका गया और वह झंडो के साथ डंडे लेकर भी संसद भवन तक पहुंचे थे। इस मुद्दे पर एक बात तो स्पष्ट है कि इस शर्मनाक घटना को लेकर हमारे माननीय कतई भी शर्मिदा नहीं है। इसका एक पहलू यह भी है कि अमित शाह द्वारा संविधान निर्माता डा. आम्बेडकर को लेकर जो आपत्तिजनक टिप्पणी संसद में की गयी थी उसे लेकर भाजपा बुरी तरह से फंस गयी है। देश भर में हो रहे आंदोलनों से घबरा कर भी भाजपा नेताओं ने इस मुद्दे से विपक्ष और आम लोगों का ध्यान भटकाने के लिए सोची समझी रणनीति के तहत यह षडयंत्र रचा गया था और उनके निशाने पर राहुल गाधी तथा मल्लिकार्जुन खड़गे थे। असल में भाजपा को इस बात का आभास हो चुका है कि डा. आम्बेडकर पर की गयी एक टिप्पणी उन पर इतनी भारी पड़ सकती है कि सत्ता ही हाथ से चली जाये? जिसे भाजपा किसी भी कीमत पर गंवाने को तैयार नहीं है। सामाजिक आर्थिक समानता की जो लड़ायी कांग्रेेस के द्वारा संविधान को हाथों में लेकर लोकसभा चुनाव से शुरू की थी वह अब थमने वाली नहीं है। भाजपा जिस तरह से हिन्दुत्व और हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा के साथ अपना सियासी सफर को आगे बढ़ाने मे लगी है उसमें अगर सबसे बड़ी बाधा कोई है तो वह संविधान और बाबा आम्बेडकर की विचारधारा ही है जो देश के दबे कुचले और पिछड़े तथा महिलाओं को समानता का अधिकार देती है। आज अगर दलित, पिछड़े और आदिवासियों का आक्रोश गृहमंत्री के बयान को लेकर फूटता हुआ दिख रहा है तो इसका कारण बहुत ही स्पष्ठ है। सवाल यह है कि जब जनता इस लड़ाई को लड़ने के लिए तैयार होती दिख रही है तो भाजपा के नेता उसे अपने दमनकारी रवैये से कैसे रोक पायेगें। यही कारण है कि यह लड़ाई जिसे सामाजिक न्याय की लड़ाई बताया जा रहा है लम्बे समय तक चलेगी या यह कहेंं कि आर—पार की होगी।

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